बोलना या लिखना टाल सकना असम्भव हो जाता है; चाहे उसमें लोकप्रियता और उससे भी ज्यादा कुछ गँवा देनेकी जोखिम ही क्यों न हो। आप जो कुछ महसूस करते हैं, जब उसे कहना प्रसंगानुकूल हो और फिर भी यदि आप उसे न कहें तो आप असत्यके दोषी हैं। प्रसंगानुकूल सत्यको कहनेके बजाय उसे दबाकर मैं अपने जीवनकी पूरी राह ही बदल दूं, यह नहीं हो सकता।
हृदयसे आपका,
नासिक सिटी
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७४९) की माइक्रोफिल्मसे।
८१. पत्र : रेवाशंकर ज० मेहताको
गुरुवार [ २५ नवम्बर, १९२६ ][१]
आपका पत्र मिला। [ रामचन्द्र के ] कोसके[२] बारेमें समझ गया हूँ। मुझे लगता है कि चि० धीरूकी खुराकपर निगरानी रहनी चाहिए।
मैं यहाँसे २७ तारीखको वर्धाके लिए रवाना होऊँगा। चि० रतिलालने[३] किसी हीरेके व्यापारीको हीरा भेजनेके लिए लिखा था; वह पोस्टकार्ड मेरे हाथ पड़ गया। उसे कुछ भान नहीं रहता। मैंने उससे बात की तो उसने स्वीकार कर लिया। धोराजीसे दोनों वापस आ गये हैं।
मोहनदासके प्रणाम
रोज़डेल
गुजराती पत्र ( जी० एन० १२६५) की फोटो नकलसे।
३२-७