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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता॥(२,६८)

जिस मनुष्यकी इन्द्रियाँ निग्रहमें हैं, विषयोंसे अलिप्त रखी गई हैं, वह मनुष्य समाधिस्थ है।

या निशा सर्वभूतानां तस्यां जार्गात संयमी।
यस्यां जाग्रति भूतानि सा निशा पश्यतो मुनेः॥(२,६९)

अन्तमें स्थितप्रज्ञके लक्षण एक श्लोकमें दे दिये गये हैं। सबके लेखे जो रात्रि है, स्थितप्रज्ञ उस रात्रिमें जागता रहता है और जब ऐसा लगता है कि भूतमात्र सभी लोग जाग रहे हैं, तब इस पारदर्शी मुनिके लिए रात रहती है। यह स्थिति सत्याग्रहाश्रमके लिए हो सकती है। जब हमारे चारों ओर अन्धकार फैला हुआ है तब हम प्रार्थना करें कि हमें प्रकाश दिखता रहे। यदि हम वीर हैं तो संसार वीर है। हमें समझ लेना चाहिए कि 'यथापिण्डे तथा ब्रह्माण्डे'। इस तरह हमें सारे संसारका बोझ अपने कन्धोंपर लेनेके लिए तत्पर हो जाना चाहिए, किन्तु यदि हम सारे संसारकी ओरसे तपश्चर्या करेंगे तभी यह भार उठानेके योग्य बनेंगे। तभी जहाँ जगत्को अन्धकार दिखाई देता है, हमें प्रकाश दिखाई देगा। यदि लोगोंको चरखा निकम्मा लगता है, तो लगे। लोग मानें कि स्वराज्य उपवाससे नहीं मिलेगा, तो भी कोई बात नहीं है। हम यही कहें कि अवश्य मिलेगा। क्योंकि यदि हम 'यावानार्थ उद्याने' अर्थात् उपवास आदिसे ईश्वरके राज्यमें हम उसके सेवककी वर्दी पा सकते हैं, तो फिर इस स्वराज्यमें वैसा क्यों नहीं हो सकता। जगत् कहेगा कि इन्द्रियाँ निग्रहमें नहीं रह सकतीं। हम कहेंगे, जरूर रह सकती हैं। लोग कहेंगे कि सत्यसे दुनिया नहीं चली। हम कहेंगे, अवश्य चलती है। स्थितधी और संसारके बीच पूर्व-पश्चिमका अन्तर है। जगत्के लिए जो रात्रि है, वह हमारे लिए प्रकाश है । और जो जगत्के लिए प्रकाश है, वह हमारे लिए रात्रि है। इस तरह इन दोनोंके बीचमें असहयोग है । यदि हम 'गीता' का ठीक अर्थ समझते हों, तो ऐसी हमारी स्थिति हो जानी चाहिए। किन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि हम दूसरोंसे बड़े हो गये। हम बड़े नहीं हैं, छोटे हैं। हम तो एक बिन्दु हैं और जगत् समुद्र है। किन्तु हमारी श्रद्धा ऐसी होनी चाहिए कि हमारे पार जानेसे जगत् पार चला जायेगा। ऐसी श्रद्धाके बिना हम यह नहीं कह सकते कि जगत्की रात्रि हमारा दिन है। यदि उपवास और चरखे से आत्मदर्शन हो सकता है, तो जहाँ आत्मदर्शन है वहाँ स्वराज्य तो है ही।

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बुधवार, ७ अप्रैल, १९२६

कल हमने स्थितप्रज्ञका एक बड़ा लक्षण समझा, जो दूसरोंको प्रकाश जान पड़ता है, वह योगीकी दृष्टिमें अन्धकार है। उदाहरणके लिए बहुत-से लोग कहते हैं कि हमें अल्पाहारी बनना चाहिए, किन्तु जिस व्यक्तिने ईश्वरभक्ति की होगी, वह