१२९. पत्र : सो० ब० स्पिल्लेनारको
आपका पत्र' मिला। आश्रमके सदस्यके रूपमें ऐसे किसी भी व्यक्तिको दाखिल करनेपर बन्दिश नहीं है जिसका स्वास्थ्य अच्छा हो और जो जिन्दगीकी कठिनाइयाँ झेलनेको, गरीबीमें रहनेको और बराबर श्रम करनेको तैयार हो । लेकिन मैं आपको सलाह कि आप भारत न आयें, जहाँकी जलवायु आपके देशकी जलवायुसे भिन्न है और जहाँके रीति-रिवाज और आदतें आपके यहाँसे बहुत ही भिन्न हैं। मेरे खयालसे आपको जितना जरूरी लगे उतना परिवर्तन करके वहीं आश्रमके जीवनकी अनुकृति तैयार कर लेनी चाहिए। मैं आपको यह सलाह नहीं दे सकता कि आप भारत आकर अपना स्वास्थ्य खतरेमें डालें; या यहाँ आकर निराशाका अनुभव करें।
सोहन्ना बट्टीजी स्पिल्लेनार
६१, पी० डब्ल्यू० ११४ स्ट्रीट
न्यूयार्क सिटी
अंग्रेजी प्रति (एस० एन० १९७६६) की फोटो-नकलसे ।
१३०. पत्र : रोलो रसेलको
[पत्रोत्तरका पता : ]
आश्रम, साबरमती
९ दिसम्बर, १९२६
इतने वर्षोंके बाद आपका पत्र पाकर मुझे बड़ी खुशी हुई। आपने जो पुस्तक मुझे भेजी है, मिल गई है। उसे पढ़नेकी मेरी बहुत इच्छा है, लेकिन मैं नहीं जानता कि मैं उसे कब पढ़ सकूँगा ।
१. २० अक्तूवरको लिखे एक विस्तृत पत्रमें संगीत और कलाकी शिक्षिका स्पिल्लेनारने, जिन्हें अपने काममें रुचि नहीं बच रही थी, और जो 'आध्यात्मिक प्रकाश पाना चाहती थीं, गांधीजीसे आश्रम में अपने ११ सालके लड़के सहित दाखिल होनेकी अनुमति चाही थी (एस० एन० १०९३१) ।