२७२. पत्र : गुलजार मुहम्मद 'अकील' को
कुमार पार्क,बंगलोर
७ अगस्त, १९२७
प्रिय मित्र,
आपका पत्र मिला । मुझे इस बातकी खुशी है कि आपने मुझे पत्र लिखा ।
हाँ, 'रंगीला रसूल' नामक पुस्तकके बारेमें चल रहे दुर्भाग्यपूर्ण विवादसे में सचमुच अवगत हूँ । आप कदाचित् न जानते हों कि जब आपको इस पुस्तक और इसकी विषय-वस्तु के बारेमें जानकारी मिली, शायद उससे बहुत पहले ही यह मेरे हाथ आ गई थी। और मैंने 'यंग इंडिया' के स्तम्भों में इसकी कड़े शब्दों में भर्त्सना भी की थी। इस बातको अब तीन वर्ष हो चुके हैं। इस समय मेरे पास 'यंग इंडिया' की फाइल नहीं है । लेकिन पुस्तक कोई हालमें प्रकाशित नहीं हुई है। यदि आप 'यंग इंडिया' के नियमित पाठक न हों तो मुझे बताइए । मैं प्रबन्धकसे सम्बन्धित सामग्री आपको भेजे देनेके लिए सहर्ष कहूँगा ।
मैंने वर्तमान विवाद में कोई भाग नहीं लिया है, क्योंकि मेरा खयाल है कि इस सम्बन्धमें मुसलमान लोग जो आन्दोलन कर रहे हैं, वह लगभग बिलकुल गलत है। उन्होंने न्यायाधीशकी[१] जो निन्दा की है, उसके लिए कोई आधार नहीं है । कानून में संशोधन करानेके लिए आन्दोलन करना सर्वथा उचित है । लेकिन आन्दोलन हो या न हो, सरकारको तो कानूनका कड़ाई से पालन करना ही पड़ेगा ।
जहाँतक इस बात का सवाल है कि किसका कितना दोष है, सचाई यह है कि जितनी और जैसी कटु तथा अश्लील बातें इस्लाम के खिलाफ लिखी गई हैं, हिन्दू- धर्मके खिलाफ भी कमसे कम उतनी और वैसी ही अश्लील बातें तो लिखी ही गई हैं। यह सब मैंने 'यंग इंडिया' के पृष्ठों में बड़े स्पष्ट शब्दोंमें कहा है । में सभी अखबार तो नहीं पढ़ता। लेकिन, हिन्दुओं द्वारा सम्पादित अखबार मुझे 'रंगीला रसूल' के लेखककी कार्रवाईका जोरदार शब्दोंमें अथवा किसी भी रूप में समर्थन करते नहीं दिखाई देते, और न यही लगता है कि उन्होंने किसी और तरहसे पैगम्बर के प्रति अनादरका भाव ही प्रदर्शित किया है। इस सम्बन्धमें आपके ध्यान में जो अखबार हैं, यदि आप उन्हें मेरे पास भेज सकें तो मैं आपका आभारी होऊँगा । अथवा यदि आप उन अखबारोंके नाम और अंक संख्या लिख भेजेंगे तो मैं स्वयं ही उन्हें मँगवा लूंगा ।
मुझे यह जानकर दुःख हुआ कि आप समझते हैं, में भी साम्प्रदायिकता से प्रभावित हो गया हूँ । जहाँतक मैं अपने-आपको जानता हूँ, मैं आपको आश्वासन दे
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- ↑ न्यायमूर्ति दिलीपसिंह; देखिए " एक पत्र ", १०-७-१९२७ ।