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भाषण: राजापालयम्की सार्वजनिक सभामें

ले जाया गया, जहाँ मुझे यह देखकर आश्चर्य हुआ कि वे पर्दानशीन हैं। लेकिन ये बहनें कोई कताई नहीं करती हैं। मुझे मालूम हुआ है कि अपने जीवनमें पहली बार वे किसी सभामें इकट्ठी हुई थीं। मैं चाहता हूँ कि आप इस पर्दा-प्रथाको समाप्त कर दें और इन औरतोंके लिए यह सम्भव और सुविधाजनक बना दें कि वे सभीके लाभके लिए आपसमें समय-समयपर मिल सकें। भारी जेवरों और कपड़ोंसे लदी इन महिलाओंमें और कताई करनेवाली गरीब बहनोंमें जो अन्तविरोध था, उसकी कल्पना भी भयंकर है। इन पर्दानशीन महिलाओंने कुल मिलाकर बहुत सारे जेवर और कीमती साड़ियाँ पहन रखी थीं। मैं इन धनी लोगोंसे कहता हूँ कि वास्तविक अच्छाई और पवित्रता भारी गहनों और कीमती साड़ियोंमें नहीं है। धनका इस प्रकार प्रदर्शन नहीं किया जाना चाहिए। किसीके पास धन होनेका मतलब यह है कि उसके पास एक धरोहर पड़ी हुई है, जिसका उपयोग ईश्वरके नामपर और सभी गरीब लोगोंके वास्ते किया जाना चाहिए। समृद्ध परिवारमें जन्म लेने और पलनेका लक्षण बहुमूल्य कपड़ों और जेवरोंसे लदे होना नहीं है, बल्कि दूसरोंकी भलाई करना और ऐसे काम करना है जो समाजके लिए उपयोगी हैं। मुझे इन महिलाओंसे कुछ इसी ढंगसे बात कहनेका सौभाग्य प्राप्त हुआ। लेकिन मैं जानता हूँ कि बिना अपने मर्दोंकी सहायताके उनके लिए पहल करना सम्भव नहीं है। इसलिए मैं आपसे अपील करता हूँ कि आप स्त्रियों में सादगीका सन्देश पहुँचायें और हमारे जीवनको सादा बना सके, इसके लिए खादीसे ज्यादा शक्तिशाली चीज में दूसरी नहीं जानता। हर ऐसे धनी घरमें, जहाँ खादीने प्रवेश किया है, उस घरके लोगोंका जीवन ही एकदम बदल गया है। जाने क्या बात है कि खादीका बहुत आभूषणोंकी बहुलतासे कुछ मेल नहीं बैठता। इसीलिए मैंने खादीको धनी और गरीबसे गरीब लोगोंके बीचका सेतु कहा है। और मैं पूरी आशा करता हूँ कि आप अपना और अपनी स्त्रियोंका जीवन ऐसा बनायेंगे कि उनके जीवनमें और उन कातनेवाली महिलाओंके जीवनमें कुछ समानता आ सके जिन्हें मैंने आज देखा है, तथा धनी और निर्धनोंके बीच जो भयंकर असमानता आज मौजूद है वह मिट सके। इन दो सभाओंसे निपटकर मैंने खादी संघके सदस्योंसे भेंट की। ये कोई २० व्यक्ति हैं जिन्होंने एक साथ मिलकर खादीका विकास करनेके लिए अपने धनका कुछ हिस्सा लगानेका निश्चय किया है। और यदि इस संघके सदस्योंमें उचित खादी-भावना है तो मुझे सन्देह नहीं कि यह सही दिशामें उठाया गया कदम है। जो भी व्यक्ति खादीके धन्धेमें प्रवेश करे, वह एक न्यासीकी भावना लेकर आये । हमें लाखों कतैयोंके हितोंको सर्वोपरि स्थान प्रदान करना चाहिए। सामान्य व्यापार में तो सिद्धान्त यह है कि हम अपनी चिन्ता करते हैं, और हम जिनके साथ व्यापार करते हैं वे अपनी चिन्ता आप करते हैं। खादीके व्यवसायमें स्थिति उलट जाती है। हम सबको - मैं, जो चन्दे इकट्ठा करता हूँ, व्यापारी, जो खादीका व्यापार करते हैं, संग- ठनकर्ता, जो गाँवोंमें जाते हैं -- उन कतैयोंके कल्याणके लिए अपने आपको न्यासी समझना चाहिए जिनके और केवल जिनके लिए ही हमारा अस्तित्व है। खादीकी सफलताके लिए मैं इसे एक अपरिहार्य शर्त मानता हूँ। और जिस प्रकार एक ट्रस्टीको भी कमी-