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भाषण: राजापालयम्की सार्वजनिक समामें

में प्रवेश नहीं कर सकते, हालाँकि इनका ईश्वरके घरमें प्रवेश निषिद्ध करनेका कोई औचित्य नहीं है। इसके बावजूद मेरे लिए नाडरोंके विरुद्ध लगाये गये इस प्रकारके बेतुके प्रतिबन्धको समझ सकना असम्भव था। मैं नहीं जानता कि आप लोग, जो इस सभामें मौजूद हैं, इस दिशामें कुछ कर सकते हैं या नहीं। लेकिन एक तरीका है जिस तरीकेसे आप चाहें तो आपमें से हरएक मदद कर सकता है। क्योंकि यह बेतुका प्रतिबन्ध भी अन्ततः उसी अन्दर-अन्दर खोखली करनेवाली बीमारीका लक्षण है। यह अस्पृश्यता और जात-पाँतके अभिशापका परिणाम है। मैं वर्णाश्रम और जात-पाँतमें बहुत स्पष्ट अन्तर करता हूँ। अस्पृश्यताको मैं एक अक्षम्य पाप और हिन्दू- धर्मका बहुत बड़ा कलंक मानता हूँ। जात-पाँतको मैं हमारी प्रगतिके मार्गमें रोड़ा और एक वर्ग द्वारा अहंकारवश दूसरे वर्गपर जमाया गया श्रेष्ठताका दावा मानता हूँ । अस्पृश्यता इसका सबसे खराब नमूना है। यही समय है कि हम अस्पृश्यता और जात-पाँतके कलंकसे मुक्त हो जायें। हमें वर्णाश्रमको अस्पृश्यता और जात-पाँतके साथ जोड़कर उसका महत्त्व गिराना नहीं चाहिए। वर्णाश्रमकी मेरी जो कल्पना है, उसमें अस्पृश्यता और जात-पाँतके वर्तमान भेद-जैसी कोई चीज नहीं है। वर्णोंका श्रेष्ठता या हीनतासे कुछ लेना-देना नहीं है। वर्ण तो उस एक निश्चित नियमकी स्वीकृति है जो मानवके सच्चे सुखका स्रोत है। और इसका सीधा-सादा मतलब यह है कि हमें अपने पूर्वजोंसे प्राप्त होनेवाले सभी अच्छे गुणोंको मूल्यवान मानकर उनका परिरक्षण करना चाहिए, और इसीलिए जबतक कोई पेशा अनैतिक न हो तबतक हमें अपने बाप-दादोंके धन्धेको करना चाहिए। और कोई ऐसा भी व्यक्ति, जो मानता है कि मनुष्य अपने स्रष्टाकी आराधना करनेके लिए जन्मा है, यह स्वीकार किये बिना नहीं रह सकता कि यदि वह अपना समय नये धन्धोंकी खोजमें व्यर्थ न गँवाये तभी वह अपने जीवनके उद्देश्यको पूरा करने में समर्थ होगा। अत: आप देखेंगे कि वर्णकी इस कल्पनामें और जात-पाँतमें कोई समानता नहीं है। इसलिए मैं आपसे कहूँगा कि आप अस्पृश्यता और जात-पाँतके अभिशापसे लड़नेके लिए अपनी कमर कस लें, और आपका जितना भी प्रभाव है उस प्रभावका उपयोग इस ध्येयके लिए कीजिए कि प्रत्येक मन्दिर, विना जात- पाँतका भेद किये, सभीके लिए खुल जाये। किसीके भी लिए अपने मन्दिरोंके द्वार बन्द करते हुए हम भूल जाते हैं कि हम स्वयं ईश्वरको ही 'अस्पृश्य' बनाये दे रहे हैं।

मैंने इस यात्राके दौरान अन्य सभाओंमें जिन सवालोंपर चर्चा की है, उनकी चर्चा करके मैं आपका समय नहीं लूंगा। मैं आपके साथ कुछ व्यापार करना चाहता हूँ। उन सब सभाओंमें बहनों द्वारा दिये गये कुछ आभूषण मेरे पास हैं। जैसा कि आप जानते हैं, मैं ऐसी सभाओंमें ऐसे आभूषणोंको बेचता रहा हूँ, क्योंकि मैं इनमें से किसी चीजका कोई निजी उपयोग नहीं कर सकता। और न मैं उन बड़े-बड़े चौखटोंको ही अपने साथ लिये हुए चल सकता हूँ, जिनमें अभिनन्दनपत्र मढ़े हुए हैं। मेरे पास वास्तवमें कोई जगह भी नहीं है जहाँ उन्हें टाँग सकूँ। और दिन-प्रतिदिन एक स्थानसे दूसरे स्थानकी यात्रा करते समय इन चीजोंको साथ लिये चलना तो बहुत असुविधाजनक है। इसलिए मैं आपसे अपील करूंगा कि आप इनके लिए बोली लगाकर मुझे इन चीजोंके