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६६. टिप्पणियाँ

एक खादी-प्रेमी

डॉ० कैलाशनाथ काटजू[१] प्रयाग उच्च न्यायालयके नामी वकील हैं। कुछ दिन पहले उन्होंने मेरे पास कई बातोंके सम्बन्धमें एक पत्र लिखा था। उस पत्रमें उन्होंने खादीके प्रति अपना प्रेम प्रकट किया था और उसके साथ अ० भा० चरखा संघको अपने चन्देकी पहली किश्त भी भेजी थी। मैंने सोचा कि दूसरे धनी लोगों और खासकर वकीलोंके प्रोत्साहनके लिए उस पत्रका खादी-सम्बन्धी अंश प्रकाशित करना चाहिए। इसके लिए उनकी इजाजत लेनेके लिए मैंने उन्हें एक पत्र लिखा। उसमें प्रसंगवश मैंने विदेशी काले अलपाका कपड़ेका भी विरोध किया था और यज्ञार्थ कातनेका महत्त्व समझाने की कोशिशकी थी। अब मैं उनके दो पत्र, जहाँतक वे खादीसे सम्बद्ध हैं, नीचे दे रहा हूँ :[२]

वकील और दूसरे पेशेवर लोग और कुछ भले ही न कर सकें, मगर खादीको अपनाकर और अ० भा० च० संघ को सहायता देकर डॉ० काटजूके सुन्दर उदाहरण का अनुकरण तो सभी कर सकते हैं। और अ० मा० चरखा संघ तंगीमें है, क्योंकि अभी संघके हाथमें जितने गाँव हैं, उनसे अधिक गाँवोंका संगठन करनेकी माँग बरा- वर बढ़ती जा रही है। पूँजी बढ़ाये बिना अधिकाधिक खादी तैयार की नहीं जा सकती और जबतक खादीका हिन्दुस्तानमें घर-घर प्रचार नहीं हो जाता, चरखा-संघ- को तो हर साल यह खर्च उठना ही पड़ेगा।

दोहरा पाप

कुछ दिन पहले "इसे भी विवाह कहेंगे?"[३] शीर्षकसे मेरा एक लेख छपा था। उसके सम्बन्धमें एक भाईने एक लम्बा-सा पत्र लिखा है। वैसे तो उन्होंने मेरी जानकारीके लिए अपना नाम भी भेजा है, लेकिन इस चर्चामें उपयोग करनेके एक छद्मनाम दिया है "एक कुवाँरा " । पत्रका सार मैं नीचे दे रहा हूँ[४]

  1. १. (१८८७-१९६८); प्रमुख कांग्रेसी नेता, कुछ समयतक केन्द्रीय मन्त्रिमंडल में गृहमन्त्री थे और बादमें मध्यप्रदेश के मुख्यमन्त्री हुए।
  2. २. पत्र यहाँ नहीं दिये जा रहे हैं। डॉ० काटजूने खादी-कोषके लिए मासिक चन्दा भेजने, नियमित रूपसे कातने और विदेशी अलपाकाके
  3. ३. १-९-१९२७ को; देखिए खण्ड ३४ ।
  4. ४. यह यहाँ नहीं दिया जा रहा है। उसने लिखा था कि मैंने आपका "इसे भी विवाह कहेंगे?" शीर्षक लेख पढ़ा। यद्यपि उसमें सम्बन्धित पक्षके नाम नहीं बताये गये हैं फिर भी कारवारके इम गौड़ सारस्वत ब्राह्मणोंको सब-कुछ भली-भांति मालूम है। उसने आगे लिखा था कि यद्यपि इसमें सन्देह नहीं कि लड़की खरीदना बड़े अपवादको बात है, लेकिन एक दूसरी भी प्रथा है, जो उतनी ही बुरी है। इसमें लड़कीके पिताको अपनी कन्याके लिए वर खरीदना पड़ता है और खरीदको रकमको दहेज की संज्ञा दी जाती है। यह रकम लड़कीके पिताकी औकातपर नहीं, बल्कि लड़केकी शिक्षा-दीक्षा और आर्थिक स्थितिपर निर्भर