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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अनुरोधके साथ थैली दी होती कि उसका एक अंश आपके स्कूलको दे दिया जाये तो मैं खुशीसे वैसा कर सकता था। अब भी यदि कोई नागरिक उस इरादेसे मुझे धन देना चाहता हो तो मैं वैसा खुशीसे करूंगा। लेकिन इस संस्थाको चलानेका यह कोई तरीका नहीं है, हालाँकि इससे थोड़ी मदद जरूर मिलेगी मगर तूतीकोरिनके नागरिकोंके लिए शोभनीय यही है कि वे इस शिक्षण संस्थाकी मौजूदा हालतकी जाँच करें और उसे सर्वथा स्वावलम्बी बना दें।

मैं कई राष्ट्रीय पाठशालाओंके अपने निजी अनुभवसे जानता हूँ कि ये किस प्रकार चलाये जाते हैं और राष्ट्रीय उद्देश्योंकी वे कितनी अच्छी तरहसे सेवा कर रहे हैं। यदि आपने उत्तर भारतके अपने भाइयोंके ऊपर पड़े संकटमें कोई दिलचस्पी ली है तो आप देखेंगे कि उन गाँवोंकी राष्ट्रीय शालाओंके छात्रोंने उजड़े इलाकोंको फिरसे बसाने और अपनी शक्ति और साधन-भर गाँववालोंके संकटको हल्का करनेमें जबर्दस्त सहायता पहुँचाई है। गुजरातकी राष्ट्रीय शालाओंके छात्रोंने सहज उत्साह और स्वेच्छासे जो ठोस सहायताकार्य किया, उसके बिना श्री वल्लभभाई पटेल बाढ़-पीड़ित लोगोंको वह राहत नहीं दे पाते जो उन्होंने दी। अतः मैं तूतीकोरिनके नागरिकोंसे अपील करता हूँ कि वे इस संस्थाको जिन्दा रखें ।

आपके लिए खादी-कोषसे सहायता प्राप्त करनेका एक तरीका है। आप जानते हैं कि अखिल भारतीय चरखा संघ नामक एक संस्था है। यदि आप अपने छात्रोंको हाथ-कताई और सूत तैयार करनेके लिए राजी कर सकें, तो आप वह सूत संघ को भेज सकते हैं, और बदलेमें संघ आपको खासी कीमत देगा और एक तरहसे आपकी सहायता करनेकी भी कोशिश करेगा।

मैंने लोगोंको कहते सुना है कि इस प्रान्तकी यात्राके दौरान मैंने तमिल भाषा- का कोई जिक्र नहीं किया है और न सीखनेकी आवश्यकताका ही जिक्र किया है। बल्कि उसके लिए मुझपर दोषारोपण भी किया गया है। मुझे दुःखके साथ कहना पड़ता है कि मैं इस मीठी फटकारको स्वीकार नहीं कर सकता। जो लोग मुझे अच्छी तरह जानते हैं वे मानेंगे कि यह फटकार देना मेरे साथ अनुदारता बरतना है। मैंने अंग्रेजी भाषा सीखनेसे पहले तमिल भाषा सीखनेकी आवश्यकताके बारेमें कई बार कहा है, और बहुत पहले, १९१५ से ही मैं लोगोंसे कहता रहा हूँ कि वे अंग्रेजीकी अपेक्षा तमिलके अध्ययनको प्राथमिकता दें। आजसे दस वर्ष पूर्व, १९१७ से पहले मैंने सारे भारतमें एक अनवरत आन्दोलन चलाया कि स्कूलोंमें छात्रोंको प्रान्तीय भाषाओंके माध्यमसे शिक्षा दी जाये और लोगोंसे बराबर कहा कि वे अपनी-अपनी प्रान्तीय भाषाओंमें बातचीत करें और उनके साहित्यका अध्ययन करके उन्हें समृद्ध बनायें ।

'तिरुकुरल"[१] में जो बहुमूल्य निधियाँ संचित हैं, उनकी ओर आपने मेरा ध्यान ठीक ही आकृष्ट किया है। मैं आपको बता दूँ कि आजसे बीस वर्ष पहले मैंने 'तिरु- कुरल' को मूल तमिलमें पढ़नेके उद्देश्यसे सीखना शुरू किया। मेरे लिए यह गहरे दुख- का विषय रहा है कि ईश्वरने मुझे तमिल भाषा सीखनेका पूरा समय ही नहीं दिया।

  1. १. एक प्राचीन तमिल ग्रन्थ ।