पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/१३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

नौ

इस खण्डमें गांधीजीके अनेक ऐसे पत्रोंका समावेश है जो उन्होंने मीराबहनको " सख्त ऑपरेशन के बाद ठण्डक पैदा करनेवाले मरहम ' के रूपमें लिखे हैं (पृष्ठ ५९ ) । अन्य अनेक पत्रोंमें एक पत्र श्री किशोरलाल मशरूवालाको है (पृष्ठ १६४-६६) जिसमें उन्होंने इस बातका विवेचन किया है कि एक चोरके विरुद्ध गवाही देनेका प्रसंग खड़ा होनेपर किसी अहिंसाके पुजारीका क्या कर्त्तव्य हो जाता है। उन्होंने कहा कि संवेदना यदि सहज और खरी नहीं होती तो उसका कोई परिणाम नहीं होता । कांचीपीठके स्वामी शंकराचार्य के साथ अपनी भेंटके दो दिन बाद उन्होंने अपने ही सम्बन्धमें यह स्वीकारोक्ति की कि "हिन्दू-मुसलमानोंके झगड़ोंसे मैंने जो अपना हाथ खींच लिया है, इसका कारण यही है कि मुझे अपनी दया अधूरी या कृत्रिम मालूम होती है। कृत्रिमसे मेरा मतलब यह नहीं है कि वह झूठी है। मत- लब सिर्फ इतना ही है कि वह बुद्धिके ही क्षेत्रमें है, उससे ज्यादा गहरी नहीं जाती (पृष्ठ १६५) । गंगाबहन वैद्यको तथा आश्रमकी बहनोंको लिखे अपने पत्रोंमें उन्होंने आश्रमकी बहनोंके आपसी झगड़ोंको लेकर जो टीका की थी और जिसके कारण उनमें बड़ा क्षोभ पैदा हो गया था, उसकी चर्चा की और उन्हें समझाया कि वे सब अपनेको एक ही परिवारका सदस्य मानें और इस प्रकार अपने झगड़ोंका निबटारा स्वयं कर लिया करें। श्री सी० एफ० एन्ड्रयूजको लिखे एक पत्रमें अपने डाक्टरोंसे मीठी चुटकी लेनेका लोभ-संवरण वे नहीं कर पाये। उन्होंने लिखा: “तीन डाक्टरोने तथा तीन यंत्रोंने कल (ब्लड प्रेशरके) विभिन्न अंक सूचित किये २००, १८०, १६० "

(पृष्ठ ४१२) ।