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पत्र : मगनलाल गांधीको

है। इस प्रयत्नमें विजय तो तुम्हें पानी ही चाहिए । यह याद रखना कि ज्यों-ज्यों तुम्हारा हृदय कोमल होता जायेगा त्यों-त्यों तुम विकारको जीतनेमें सफलता प्राप्त करोगे । विकारविहीन होनेमें कठोरताकी जरूरत होती है। जिसके हृदयमें केवल करुणा ही है, उसे विकारवश होनेके लिए एक क्षणका भी अवकाश नहीं मिलता। इसीलिए मैंने कई बार कहा है कि शुद्ध ब्रह्मचारी कमी क्रोधके वश नहीं होता । शास्त्रोंमें इसके जो उदाहरण मिलते हैं, मैं मानता हूँ उनके पीछे अनुभव नहीं है। ये उदाहरण स्थूल ब्रह्मचर्यके ही हैं। इस विषयमें गहरे उतरोगे तो मेरे कथनकी सचाई तुम स्वयं ही अनुभव कर लोगे ।

तुम सब लोगोंको यह भय तो छोड़ ही देना चाहिए कि मैं उपवास करूंगा। देवदासके लिए मैंने कहाँ उपवास किये? इस भयमें केवल मोह और अज्ञान है । मैं कभी एकाएक उपवास नहीं करता। और करता हूँ तो अपनी शुद्धि और शान्तिके लिए ही करता हूँ। उपवास भय और चिन्ताका कारण नहीं होना चाहिए; उचित तो यह होगा कि उसे लोगोंकी चौकसी करनेका साधन समझा जाये और उस रूपमें उसका स्वागत किया जाये । जो व्यक्ति ईमानदारीसे प्रयत्न करता है वह माता-पिता या मित्रोंकी चौकसीसे डरता नहीं बल्कि उसका स्वागत करता है। मेरा उपवास भी इसी दृष्टिसे देखा जाना चाहिए। उपवासका दुरुपयोग होता है, यह बात सही है। किन्तु मुझे निश्चय है कि विचारपूर्वक किया जानेवाला उपवास सत्यके पुजारीके लिए आवश्यक है। क्या हम यह नहीं जानते कि अच्छीसे-अच्छी चीजका भी बुरासे-बुरा उपयोग हो सकता है ? जो आदमी अच्छे माने जाते हैं वे लोगोंको जितना ज्यादा ठग सके हैं उतना बुरा माने जानेवाले आदमी कभी नहीं ठग सकते ।

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

७८. पत्र : मगनलाल गांधीको

[१० अक्टूबर, १९२७ के लगभग ]

[१]

चि० मगनलाल,

तुम्हारे दोनों पत्र मिले ।...[२] के सम्बन्धमें आश्रममें ही जबरदस्त मतभेद देखता हूँ। अब इस मामलेमें मैं तुम्हें तकलीफ नहीं दूंगा । छगनलाल जोशीके साथ कुछ पत्र-व्यवहार चला रहा हूँ । उसका निपटारा करके फिलहाल तो मौन धारण करूंगा और जनवरीमें जब मैं वहाँ आऊँगा तब इस अध्यायको दुबारा खोलूंगा। मेरे मनमें सन्देह अब भी रह गया है। निर्दोष मनुष्य आत्मघात नहीं करता । ने

  1. १. दुग्धालयके आंकड़ोंमें भूलके उल्लेखसे ।
  2. २ और ३. नाम छोड़ दिये गये हैं। ३५-८