पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/१४७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।

८३. भाषण : अलेप्पीकी सार्वजनिक सभामें

१२ अक्टूबर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

दरिद्रनारायणके प्रतिनिधिके रूपमें मुझे भेंट किये गये आपके अभिनन्दनपत्रों तथा अनेक थैलियोंके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ। जैसा कि मैंने नागरकोइलमें कहा था, त्रावणकोरकी सीमामें प्रवेश करनेके साथ ही मैंने अपने आपको अस्पृश्यताकी समस्याका अध्ययन करते और उसके समाधान में सहायता करते हुए पाया। इस उद्देश्य- को देखते हुए मेरी त्रावणकोरकी यह यात्रा बहुत संक्षिप्त हो है, और आज उसके अन्तिम दिनमें अपने भाषणका ज्यादातर भाग उसी समस्याको देना चाहता हूँ । सचमुच मेरी इच्छा थी कि मेरे पास और अधिक समय होता ताकि मैं यहाँ ज्यादा समय तक रुककर इस समस्याका ज्यादा अच्छी तरह अध्ययन कर सकता और जो सहायता यहींकी-यहीं दे सकता, देता ।

इस समस्याका छोटा-मोटा विशेषज्ञ होनेके नाते मुझे लगता है कि मैं इस राज्यके शासनको और यहाँके लोगोंको इस समस्याका एक न्यायसम्मत हल निकालनेमें कुछ सहायता दे सकता था, भले ही वह अत्यन्त तुच्छ ही क्यों न होती। मुझे इस बातकी खुशी है, और मैं इसके लिए कृतज्ञ हूँ कि मैं कह सकता हूँ कि मैंने जिस भावनासे अपने विचार यहाँ व्यक्त किये हैं, उसी भावनासे राजमातासे लेकर राज्यके प्रत्येक अधिकारीने मेरी बातोंको ग्रहण किया है। मैं अपने अवर्ण मित्रोंके सम्बन्धमें मनमें कोई सन्देह नहीं रख सकता था, क्योंकि मैं तो अपनेको अस्पृश्योंमें भी अस्पृश्य मानता हूँ और मैं कई सभाओंमें अपनेको नायडी कहनेमें नहीं हिचका हूँ । शायद आपमें से कुछ लोग जानते भी न हों कि नायडी क्या चीज होती है। नायडी वह प्राणी है, जिसका स्थान तथाकथित अस्पृश्योंमें भी सबसे हीन है। आधुनिक हिन्दू- के लिए यह अत्यन्त कलंककी बात है । उसको देखनेसे भी सवर्ण-हिन्दू अपवित्र हो जाता है, ऐसा माना जाता है। इसलिए उसे न केवल नालीका कीड़ा बना दिया गया है, बल्कि उसे सवर्ण हिन्दूकी नजरोंके सामने जानेतक की अनुमति नहीं है। जब मैं बाजारसे गुजर रहा था मुझे ठीक याद नहीं कि कोचीनमें या त्रिचूरमें -- तो मुझे नायडी जातिके कुछ लोगोंको देखनेका दुखद अनुभव हुआ। और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि यदि मेरे पास समय होता, यदि मैंने अपने ऊपर एकाधिक कामोंका दायित्व न ले रखा होता, और यदि मुझमें साहस होता, तो मैं सवर्णों की बस्ती छोड़कर इन नायडी लोगोंके बीच रहनेका सुख प्राप्त करता, जिन्हें देखना भी पाप माना जाता है। हम हिन्दुओंने मानवताके एक अंशके साथ जो महान अन्याय किया है और आज भी कर रहे हैं, उसका यह एक बहुत ही मामूली प्रायश्चित्त है। लेकिन मैं अपनेको इस विश्वाससे आश्वस्त करता हूँ, अथवा कहिए कि मैं अपनेको धोखा देकर