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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

( एक आवाज : यहाँ तो यह त्रावणकोरसे भी ज्यादा उग्र रूपमें वर्तमान है) जब अन्धकारका साम्राज्य हो, तब कम और ज्यादा अन्तर करनेसे क्या फायदा ? मैं स्वीकार करता हूँ कि हालके वर्षोंमें काफी सुधार हुआ है। मैं मानता हूँ कि महा- राजा साहब और उनके अमलोंमें प्रगतिकी रफ्तार तेज करनेकी इच्छा है। मुझे यह देखकर बहुत खुशी हुई कि राजघरानेके एक सदस्य पुलाया भाइयोंके लिए एक संस्था चला रहे हैं। लेकिन मेरे लिए इतनी प्रगतिसे संतुष्ट होना सम्भव नहीं है। और मैं चाहता हूँ कि महाराजा साहब और उनके अमले भी अब मेरी ही तरह इन युगों पुराने अन्यायोंके प्रति अधीर हो उठें। राज्यके शासककी हैसियतसे महाराजा साहब प्रगतिको एक छोटे फुटसे नापकर संतुष्ट होनेका दावा कर सकते हैं। लेकिन पवित्र हिन्दू धर्मके संरक्षककी हैसियतसे उन्हें इन अन्यायोंको चिरस्थायी नहीं बनने देना चाहिए, जो हिन्दू-धर्मको खोखला किये दे रहे हैं। अच्छे मौसममें किसी जहाजके कप्तानके लिए मामूली रफ्तारसे यात्रा करते हुए भी ठीक समयपर अपने गन्तव्य बन्दरगाहपर पहुँच जानेकी आशा करना उचित हो सकता है लेकिन हिन्दू धर्मकी यह नौका तो बिलकुल बदलीवाले और तूफानी मौसममें यात्रा कर रही है। अन्य धर्मोकी भाँति हिन्दू-धर्म भी आन्तरिक उथल-पुथलके दौरसे गुजर रहा है। दुनियाकी निगाहें भारतके करोड़ों लोगोंपर लगी हुई हैं। वे उत्सुकतासे इस बातकी प्रतीक्षा कर रहे हैं कि हम हिन्दू इस समस्याको कैसे सुलझाते हैं। और ऐसे तूफानी मौसममें प्रगतिकी धीमी रफ्तारसे सन्तुष्ट होना आत्मघातक है। अगर हम उस तूफानसे आगे निकल जाना चाहते हैं जो फटने-फटनेको है तो हमें बहादुरीके साथ पूरी रफ्तारसे नौका चलानी पड़ेगी। सदियोंसे इन चीजोंके संरक्षक जो पुजारी लोग रहे हैं, उनकी भावनाओं और उनके अन्धविश्वासोंको सोनेकी तुलामें रखकर तौलनेके लिए बैठे रहना असम्भव है। जिस बुराईको हर आदमी स्वीकार करता प्रतीत होता है, उसे देखते हुए इन सब पूर्वग्रहों और अन्धविश्वासोंके समाप्त होनेकी प्रतीक्षा करते बैठना सम्भव नहीं है।

इसके बाद महात्मा गांधीने कोचीनमें प्रचलित उस प्रथाका उल्लेख किया जिसके अनुसार जब देवताओंको मन्दिरोंसे निकालकर सार्वजनिक भागोंसे जुलूसमें ले जाया जाता है, उस समय अस्पृश्योंको मार्गमें नहीं पड़ने दिया जाता, मानो उन्होंने सड़कोंके रख-रखावके लिए कर दिया ही नहीं हो। उन्होंने कहा :

आपकी विधान परिषदकी कार्यवाहियोंकी रिपोर्टें पलटते समय मैंने इस प्रथाका एक बचाव जब यह पाया कि वह अति प्राचीन रिवाजके ऊपर आधारित है, तब मुझे हँसी भी आई, दुःख भी हुआ। चूंकि मैं एक वकील रहा हूँ जिसकी वकालत किसी समय काफी अच्छी चलती थी, इसलिए मैंने अपनी याददाश्तमें यह बात ताजा करनेकी कोशिश की कि अति प्राचीन रिवाज किसे कहते हैं। और मुझे एक मामले- के बारेमें यह पढ़नेकी धुंधली याद है, जिसमें न्यायाधीशने यह तीखी बात कही थी कि मानवताके विरुद्ध अपराध करनेके पक्षमें किसी रिवाजकी अति प्राचीनताकी दलील नहीं दी जानी चाहिए। ये अति प्राचीन रिवाज समयके साथ जन्मे हैं। पाप तो