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९०. भाषण : त्रिचूरमें

१४ अक्टूबर, १९२७

अध्यक्ष महोदय और मित्रो,

मैं आपको अभिनन्दनपत्र तथा भेंट की गई इन अनेक थैलियोंके लिए धन्यवाद देता हूँ। त्रिचूरकी इस दूसरी यात्राका आनन्द पानेकी मेरी काफी इच्छा थी । मैं यह तो नहीं कह सकता कि त्रिचूरसे मुझे जो अपेक्षाएँ थीं, वे सब पूरी हुई हैं, तथापि आज दिन-भर अनेक मित्रोंसे हुई बातचीतसे और कई संस्थाओंको देखनेपर मैंने जितना कुछ जाना-समझा है, उससे मेरा मन आशासे भर गया है। मुझे यह देख कर बहुत हर्ष और सुख हुआ कि त्रिचूरके इन स्कूलोंमें कताई बहुत लोकप्रिय हो गई है। मैंने सैकड़ों लड़के-लड़कियोंको चरखेपर या तकलीपर कताई करते हुए देखा। लेकिन जैसा कि मैंने कहा और लिखा है, कताईका काम धार्मिक श्रद्धा के साथ और सेवा तथा वैज्ञानिक भावसे करना चाहिए। मुझे श्रीमती स्वान्स द्वारा संचालित संस्थामें लड़कियोंको कताई करते देखनेका सुख प्राप्त हुआ। संस्थाके लिए श्रीमती स्वान्सके उत्साहने मुझे बहुत प्रभावित किया। लेकिन यहाँ भी मैंने देखा कि कताई वैज्ञानिक ढंगसे नहीं की जाती । जबतक कच्ची रुई न उपलब्ध हो, तबतक यदि कताईको बिलकुल दाखिल न किया जाये तो तनिक भी हर्ज नहीं होगा। लेकिन कताईके प्रति अत्यधिक उत्साह रखनेवाले उन लोगोंके हाथों भी कताईके बहुत लोका. प्रिय हो जानेका खतरा है जो कताईकी तकनीक न जाननेके कारण उसके प्रयोगमें गड़बड़ी कर सकते हैं। मुझे अपने स्कूलके दिन याद हैं। वहाँ लड़कोंको रेखागणित पढ़ना अच्छा नहीं लगता था। उसका कारण लड़कोंमें नहीं, बल्कि स्वयं शिक्षकमें था। विषयकी ठीक पकड़ न होनेके कारण वह लड़कोंके सामने तख्तेपर कोई सवाल लिखकर उसके बारेमें बोलने लगता था, जिसे लड़के कभी समझ ही नहीं पाते थे। अब व्यक्तिगत तौरपर मैं मानता हूँ कि रेखागणित एक अत्यन्त दिलचस्प विषय है और उसकी रोचकताको समझ लेनेके बाद मुझे लड़कों द्वारा इस विषयके विरुद्ध अकसर उठाई जानेवाली आपत्तियाँ कभी समझमें नहीं आईं। लेकिन यदि ऐसी चीजोंकी गहराई में जायें तो आप देखेंगे कि जहाँ कहीं भी कोई विषय-विशेष नीरस लगता है या लड़के-लड़कियोंके बीच लोकप्रिय नहीं होता, वहाँ गलती लड़के-लड़कियोंकी नहीं होती, बल्कि मुख्य रूपसे शिक्षकोंकी होती है। लेकिन रेखागणितको, जो एक महान विज्ञान है और जिसके संसार-भरमें हजारों प्रेमी हैं, कुछ मूढ़ शिक्षकों के कारण किसी भी प्रकारका खतरा न तो मेरे समयमें था और न अब है। मगर भारतके करोड़ों मेहनतकश लोगोंके दुर्भाग्यसे हाथ-कताई आज भी अपने अस्तित्वके लिए संघर्ष कर रही है। यूरोपीय विचारधाराके बहुतसे अर्थशास्त्री उस समय मुझपर हँसते हैं जब मैं