पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/१६८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१४०
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करते हैं। माता-पिताओं द्वारा दी जानेवाली इस शिक्षाके भयंकर परिणामोंकी आप आसानीसे कल्पना कर सकते हैं। बच्चे इन उपदेशोंपर हँस देते हैं और छिपकर धूम्रपान करते हैं। अतः यदि आप सचमुच सोचते हैं और आपकी तमाम बात- चीतसे, और मुझे जो तमाम अभिनन्दनपत्र मिले हैं, उनसे तो लगता है कि आप सचमुच ऐसा सोचते हैं -- कि जन-साधारणकी गरीबीकी समस्याको काफी हदतक हल करनेमें हाथ-कताईकी प्रभावकारितामें आपको विश्वास है, तो आपके लिए शोमा- की बात यही है कि आप खादीको गम्भीरतापूर्वक स्वयं अपनायें और वातावरणको खादीकी भावना और चरखेसे भर दें ।

इस राज्यमें, जहाँ ईसाई, हिन्दू और अन्य जातियोंके लड़के और लड़कियाँ इतनी अधिक शिक्षा प्राप्त कर रही हैं, आपके लिए यह एक बड़ी आसान बात है कि जहाँतक कपड़ेकी जरूरतका सवाल है, आप इस सुन्दर राज्यको आत्म-निर्भर बना दें। हम सर दिनशा वाछाके कथनको प्रमाण मानकर कह सकते हैं कि भारतकी कपड़ेकी आवश्यकता औसतन प्रति व्यक्ति करीब १३ गज है। इसलिए मैं प्रति व्यक्ति उतने कपड़ेकी लागत ४ रुपये लगाता हूँ। आप इस संख्याको राज्यकी जनसंख्यासे गुणा करके स्वयं पता चला सकते हैं कि आप कुल मिलाकर हर साल कितनी बड़ी रकम बचा सकते हैं; और अब मैं मद्यपानकी घृणित समस्यापर आता हूँ ।

मेरे लिए यह बड़े आश्चर्यकी बात है कि उस राज्यमें, जहाँ शिक्षाका इतना अधिक प्रसार है, जहाँ इतनी सारी शिक्षण संस्थाएँ हैं, इतने सारे हिन्दू और ईसाई हैं, यह भयंकर बुराई बर्दाश्त की जाती है। जैसा कि हमारे लिए उचित है, यदि हम इस देशके सभी लोगोंको अपने सगे भाई-बहन समझते होते तो इस बुराईको एक दिन भी न टिकने दिया जाना चाहिए था। क्या हम निश्चिन्त मनसे इस भयं- कर तथ्यको स्वीकार कर सकते हैं कि हमारे बच्चे अपनी शिक्षाके लिए काफी बड़ी हदतक राजस्वके इस अनैतिक साधनपर निर्भर करते हैं? मैंने बहुतसे लोगोंके मुँहसे पूर्ण मद्य-निषेधके इस आवश्यक सुधारको लागू करनेमें आर्थिक कठिनाइयोंकी चर्चा सुनी है। मैंने चरखेके रूपमें आपको इस कठिनाईका एक तैयार हल प्रदान कर दिया है। यह वास्तव में आप सबका परम कर्त्तव्य है कि प्रत्येक उचित उपायसे आप इस बुराईका उन्मूलन कर डालें, और यदि मैं शराबखोरीकी बुराईके बारेमें इस अन्दाजमें बोल रहा हूँ तो सोचिए कि मैं अस्पृश्यताकी बुराईके बारेमें किस ढंगसे बोलूंगा, जो इस सुन्दर राज्यमें अस्पृश्यता और अदर्शनीयता-जैसे घोर और भयंकर रूपमें प्रकट होती है।

मैं जानता हूँ कि तथाकथित अस्पृश्योंकी सहायताके लिए राज्यने बहुत कुछ किया है। मुझे यह देखकर अतीव हर्ष हुआ कि राजपरिवारके एक सदस्य पुलाया बस्तीकी देखभाल कर रहे हैं, और इस बस्तीको राजकीय कोषसे काफी आर्थिक सहायता प्राप्त होती है। मुझे एक निकटवर्ती स्थानके यंग मैन्स क्रिश्चियन एसोसिएशनके मन्त्रीसे मिलकर बहुत खुशी हुई, जिनपर ऐसी ही एक बस्तीकी देखभालका भार है। इस बस्तीको राज्यसे ३०० या ४०० रुपये सालानाकी सहायता प्राप्त होती है। और