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बातचीत : दलितवर्गोंके शिष्टमण्डलोंके साथ

कर सकते हैं। हिन्दू महासभा भी है जिससे वे इसकी अपील कर सकते हैं। हिंसासे उनका मामला बिगड़ जायेगा । सत्याग्रह हिंसाका सही स्थान ले सकता है।

श्री गोपालनने गांधीजीको बताया कि मेरे समुदायकी मुक्ति या तो दूसरे धर्मो- को अंगीकार करने में है या फिर स्वराज्यकी लड़ाईका त्याग करनेमें है। श्री गोपालन- ने यह जानना चाहा कि क्या विशुद्ध हिन्दू-धर्म स्थापित होनेकी कोई आशा है।

महात्माजी : हाँ, है । यदि ऐसा न हो तो मैं हिन्दू नहीं रहूँ और न मैं जीवित ही रह सकूँ ।

एक दूसरे प्रश्न के उत्तरमें, कि क्या एजवाहा आर्थ-समाज या ब्रह्मसमाजमें प्रवेश कर सकते हैं, महात्माजीने कहा कि यदि वे चाहें तो ऐसा कर सकते हैं ।

इसके बाद महात्माजीने पूछा कि यहाँ उपस्थित ज्यादातर लोग खादी क्यों नहीं पहने हैं ? श्री चमियप्पनने बताया कि इस सामाजिक लड़ाईमें इस समय सर- कार ही हमारा एकमात्र सहारा है तथा उन्होंने खादी कोषमें चन्दा देनेके विरुद्ध हालके सरकारी आदेशको भी याद दिलाई और कहा कि हम इस एकमात्र सहयोग और सहानुभूतिसे वंचित नहीं होना चाहते। उन्होंने महात्माजीसे इस लड़ाई में एजवाहोंकी मदद करनेकी अपील की ।

महात्माजीने अपनी ओरसे भरसक मदद करने का वादा किया। उन्होंने अपने श्रोताओंसे कहा कि मैं जल्दी ही खादी-कार्यको छोड़कर अस्पृश्यता के प्रश्नको हाथमें लेनेवाला हूँ। गांधीजीने उन्हें शिष्टमण्डलोंके रूपमें आकर मिलनेके लिए धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि अब मैं शबरी आश्रम जा रहा हूँ, जहाँ कि अस्पृश्यता- निवारणका कार्य चल रहा है; और इसके बाद में कुम्भकोणम मठके परमपावन श्री शंकराचार्यसे भेंट करने के लिए जाऊँगा, जिससे कि मैं, अगर हो सका तो, अस्पृश्यता निवारणके मामलेमें स्वामीजीको अपने मतसे सहमत कर सकूँ ।[१]

[ अंग्रेजीसे ]
हिन्दू, १७-१०-१९२७
 
  1. १. हिन्दूकी रिपोर्ट में आगे यह था: “महात्माजी और उनका दल मोटरमें नेल्लीचरी गांव गया। वहीं उनकी भेंट कुम्भकोणम मठमें कामकोटि पोठके श्री शंकराचार्यसे हुई। इन दो महानुभावोंके बीच मुक्त रूपसे बातचीत हुई। भेंट कोई ३० मिनटतक चली और नितान्त गोपनीय रही। " भेंटकी रिपोर्ट के लिए देखिए परिशिष्ट ४ ।