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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

की रचना कर चुका होता । हम सब अपूर्ण हैं और अपूर्ण होनेके बावजूद सम्पूर्ण होनेका शुभ और शुद्ध प्रयत्न कर रहे हैं। जो मिलकर न रह सकते हों, उनके लिए नई संस्था खोली जाये, इसमें मैं दुःख नहीं मानूंगा यदि उसका हेतु निर्मल हो तो । जबतक हम लोगोंमें सच्ची नम्रता यानी सच्ची अहिंसा प्रकट नहीं होती तबतक मतभेद रहेंगे ही। और ऐसे लोग भी रहेंगे जो शेष सबके साथ मिलकर नहीं रह सकते। ऐसा प्रसंग उपस्थित हो तो नई उपयोगी संस्थाका आरम्भ करनेमें संकोचका कोई कारण नहीं है। यदि सब अहिंसाकी दिशामें ही बढ़ रहे होंगे तो सम्भवतः किसी समय एक हो जायेंगे। एक नहीं होंगे तो भी भिन्न-भिन्न डालियोंपर झूलनेवाले, किन्तु किसी एक ही वृक्षका आश्रय लेनेवाले होंगे और इसलिए वे अपनी भिन्नतामें भी एकताका दर्शन कर सकेंगे। अतः हमें जिस वस्तुके लिए प्रयत्न करना है वह इतनी ही है कि किसीके हृदयमें पाप न हो, हम एक-दूसरेको झूठा या पापी न मानें और किसीके मनमें स्वार्थ या दम्भ न हो ।

सत्यके विषयमें अभी यहाँ और अधिक चर्चा नहीं करूंगा। तुमने जो कुछ कहा है उसे मैं समझता हूँ और उसे स्वीकार भी करता हूँ । किन्तु उनमें से कई प्रश्नोंका दूसरा सुन्दर पक्ष भी है और हमें उसका भी विचार करना चाहिए। किन्तु उस विषयपर मैं फिर कभी लिखूँगा । मुझे जल्दी नहीं है। मैं मानता हूँ कि हम एक ही वस्तुकी खोज कर रहे हैं। मैं यह नहीं चाहता कि तुम रातके सवा बजे पत्र लिखने बैठो। इसे मैं गलत समझता हूँ । गोमती वह उपचार तभी करायेगी जब उसे उसमें तुम्हारी सेवा मिले, यह बात उसे शोभा नहीं देती। जो भी शुद्ध भावसे सेवा करे उसीकी सेवा स्वीकार कर सकनेकी शक्ति उसमें होनी चाहिए ।

बापूके आशीर्वाद

[ गुजरातीसे ]
महादेव देसाईकी हस्तलिखित डायरीसे ।
सौजन्य : नारायण देसाई

९९. पत्र : गंगाबहन वैद्यको

कोयम्बटूर
सोमवार [१७ अक्टूबर, १९२७]

[१]

चि० गंगाबहन,

तुम्हारे दोनों पत्र मिले। तुम बहनें अपने पत्रोंमें जो-कुछ लिखती हो उससे मुझे दुःख होता हो, ऐसा नहीं है । वहाँ जो-कुछ हो रहा है उसे जानना मेरा कर्त्तव्य है। और जब मैं आश्रममें न रहूँ तब अपने विचारोंके द्वारा जितनी मदद दी जा सकती उतनी तो मुझे देनी ही चाहिए । Se

  1. १. बापुना पन्नो-६ : गं० स्व० गंगाबहेननेके अनुसार गांधीजी इस तारीखको कोयम्बटूर में थे।