११२. भाषण : छात्रोंके समक्ष, तिरुपुर में
२३ अक्टूबर, १९२७
गीता-कक्षाका उद्घाटन करते हुए महात्माजीने छात्रोंको सुबह ४ बजे उठने और प्रतिदिन नियमित रूपसे 'भगवद्गीता' पढ़नेकी सलाह दी उन्होंने कहा, में चाहता हूँ कि आप लोग पूरे मनसे 'गीता' का अध्ययन शुरू करें। यदि आप लोग संस्कृत नहीं पढ़ सकते तो आप 'गीता' का तमिल अनुवाद पढ़ सकते हैं, लेकिन अंग्रेजी अनुवाद नहीं क्योंकि अंग्रेजी अनुवाद 'गीता' का सच्चा महत्त्व प्रकट नहीं कर सकता। उन्होंने कहा कि 'गीता' का तीसरा अध्याय महत्त्वपूर्ण है।[१]
'गीता' में कर्मका सन्देश, भक्तिका सन्देश और ज्ञानका सन्देश दिया गया है । जीवन इन तीनोंका एक मिलाजुला समन्वित रूप होना चाहिए। सेवा इन सभीका आधार है और जो लोग देशकी सेवा करना चाहते हैं उनके लिए इससे ज्यादा महत्त्व- पूर्ण और क्या हो सकता है कि वे उस अध्यायके अध्ययनसे शुरुआत करें जिसमें कर्म- का सन्देश दिया गया है ? लेकिन आप 'गीता' को पाँच आवश्यक साधनोंसे सज्जित होकर पढ़ें। वे पाँच साधन हैं, अहिंसा, सत्य, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह और अस्तेय । तभी और केवल तभी आप 'गीता' की सही व्याख्या कर सकेंगे। और तब आप उसमें हिंसा नहीं, जैसा कि अधिकांश लोग उसमें देखते हैं, बल्कि अहिंसा देखेंगे। आप उसका अध्ययन उपयुक्त उपकरणोंसे सज्जित होकर कीजिए और मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि आपको ऐसी शान्ति प्राप्त होगी जिसका आपको पहले कभी मान भी नहीं था ।
हिन्दू, २५-१०-१९२७
- ↑ १. इसके आगेका अंश महादेव देसाई द्वारा लिखित " साप्ताहिक पत्र " से लिया गया है, जो कि यंग इंडियाके ३-११-१९२७ के अंक प्रकाशित हुआ था।