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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

वे मेरी बातोंको और विस्तारसे आपको समझायेंगे, और आप लोग खुद अपने सम्बन्धि- यों या परिचितोंके बीचमें जायेंगे और उनतक मेरा सन्देश पहुँचायेंगे ।

अब मैं चन्दा एकत्र करनेवालोंको इस सभामें भेजूं, इससे पहले मैं चाहूँगा कि प्रमुख प्रमुख लोग यदि उनकी जेबोंमें पर्याप्त धन न हो तो अपना-अपना चन्दा घोषित कर दें। जितना देनेकी वे घोषणा करेंगे, मैं आशा करूंगा कि वह रकम मुझे मंगलोर छोड़नेसे पहले दे दी जायेगी। मैं चन्दा जमा करने और चन्देका काम संगठित करने- का विशेषज्ञ हूँ, और मैं जानता हूँ कि चन्देके मामले में कुछ घंटेसे ज्यादा वक्तकी मोहलत देना बहुत ही खतरनाक चीज है। मैं प्रेमके दबावके अतिरिक्त अन्य किसी प्रकारका दबाव नहीं डालना चाहता। लेकिन मैंने आपके सामने जो भाषण दिया है यदि आप उसके महत्त्वको महसूस करते हैं तो मैं नहीं चाहता कि आप कंजूसीके साथ कुछ दें। मैं चाहता हूँ कि इसे आप अपना काम समझें । अब मैं चन्दा जमा करनेका काम आपके हाथोंमें छोड़ता हूँ ।

इसके बाद लगभग ३८० रुपयेके चन्दे घोषित किये गये और वहींके वहीं दे दिये गये । चन्देका काम चल रहा था उसी समय महात्माजीको एक पत्र दिया गया जिसे उन्होंने पढ़कर सुनाया। पत्र इस प्रकार था :

इस माहकी ५ तारीखको मुझे जिला स्काउट मास्टर और ब्वाय स्काउट्स एसोसिएशन के प्रान्तीय संगठन मन्त्रीके साथ एक वकीलके घर जानेका मौका आया। इन महाशयके मुख्तारने हमारा स्वागत किया और बरामदेमें बिठाया। बादमें वकीलको हमारा परिचय पत्र भेजा गया। उनका मुख्तार बाहर आया और मुझसे कहा कि चूँकि नामसे में एक अनुपगम्य प्रतीत होता हूँ इसलिए में बाहर सहनमें खड़ा हो जाऊँ । आत्म-सम्मानवश में वहाँसे चला आया। में इस अवसरपर उन उच्च शिक्षा प्राप्त ब्राह्मण सज्जनकी आलोचना करके आपका मूल्यवान समय नष्ट नहीं करना चाहता। निश्चय ही आपको यह जानकर कष्ट होगा कि जिस वकीलकी चर्चा मैंने को है वह इस जिलेके सर्वो- त्तम ब्राह्मणोंमें से भी एक हैं। इस दृष्टान्तसे आप देख सकेंगे कि भारतके इस भागमें अस्पृश्यताकी बुराई कितनी गहरी जमी हुई है। महात्माजीने सावधानीपूर्वक पत्रमें उल्लिखित सभी नामोंको छोड़ दिया, और कहा :

अवश्य यह एक शर्मनाक चीज है। मेरा विश्वास है कि यह घटना जरूर हुई होगी क्योंकि मैं खुद जानता हूँ, और इस प्रकारकी घटनाएँ अन्यत्र भी हुई हैं । निश्चय ही यह सराहनीय बात नहीं है। लेकिन आइए, हम उन लोगोंके लिए कुछ प्रायश्चित्त करें जो अनुपगम्यताको अभी भी संरक्षण दे रहे हैं। कोई अन्धविश्वासी व्यक्ति ऐसा करे तो मैं समझ सकता हूँ; लेकिन यह बात मेरी समझमें नहीं आती कि एक ऐसा व्यक्ति, जिसने कालेजकी शिक्षा - वह जैसी भी हो - पाई है, वकील बन गया है, वकालत कर रहा है, और इसके बावजूद - मैं क्या कहूँ ?