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१२५. भाषण : मंगलोरकी सार्वजनिक सभामें

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२६ अक्टूबर, १९२७

दरिद्रनारायणके नामपर मुझे रुपया देनेके लिए तथा अभिनन्दनपत्र भेंट करनेके लिए मैं आपका आभारी हूँ। यहाँ आनेपर मुझे यह देखकर खुशी हुई कि कुछ लोगोंने मुझसे मेरी अपनी ही भाषामें बातचीत की। मुझे एक अभिनन्दनपत्र आर्य समाजकी ओरसे हिन्दीमें भी भेंट किया गया । यदि सारे अभिनन्दनपत्र हिन्दीमें या कमसे कम आपकी अपनी भाषा कन्नड़में होते तो मुझे ज्यादा खुशी होती। इस धरतीपर परमे- श्वर ही हमें दुख और सुख देता है। उस परमेश्वरने मुझे उस समय दुख दिया जब मैंने इन अभिनन्दनपत्रोंको विदेशी भाषामें पढ़े जाते सुना। मैं इस शहरमें आपके साथ मूलतः तो चार दिन विताना चाहता था । मैं ऐसा कर सका होता तो मुझे अच्छा लगता । सामान्य रूपसे मुझे आजके दिन नीलेश्वरमें होना चाहिए था। जब हम आज दोपहर बाद नीलेश्वर रेलवे स्टेशनपर पहुँचे तो मैंने वहां हजारों लोगोंको हताश खड़े हुए देखा । उनको निराश करके उस स्टेशनको पीछे छोड़ आते हुए मेरा दिल बहुत दुखी हुआ। थोड़ी-सी सान्त्वना मुझे यही सोचकर मिलती है कि ऐसी घटनाएँ इसलिए होती हैं कि देशकी सेवाके उद्देश्यसे की जा रही इन यात्राओंमें मुझे कभी-कभी अनिवार्यतया अपने कार्यक्रममें परिवर्तन करने पड़ते हैं।

जब मैं तिरुपुरमें था तो मुझे वाइसरायका एक तार मिला था। उस तारमें परमश्रेष्ठने मुझसे दिल्ली आकर कुछ महत्त्वपूर्ण मामलोंपर अपने साथ बातचीत करनेका अनुरोध किया था। मैं समझता हूँ कि उस अनुरोधको स्वीकार करके भी मैं देशकी सेवा कर सकता हूँ। यही कारण है कि निमन्त्रणको अस्वीकार करनेका मेरा मन नहीं हुआ। मैंने आपको बताया कि मुझे दिल्ली जाना है और इसलिए मैं आपके बीच ज्यादा देर नहीं रह सकता। इसलिए कृपया मुझे माफ करें। आप सब यह जाननेके लिए आतुर होंगे कि मैं दिल्ली वाइसरायसे मिलने किस उद्देश्यसे जा रहा हूँ, उन्होंने मुझे क्यों बुलाया है और वह ऐसा कौन-सा महत्त्वपूर्ण मामला है जिसपर वह मुझसे बातचीत करना चाहते हैं। मुझे खेद है कि मैं स्वयं भी इसके बारेमें कुछ और नहीं जानता। उन्होंने तो मुझसे थोड़ी-बहुत असुविधा उठानी पड़े तो वह उठाकर भी आनेका अनुरोध-भर किया है। मुझे पूरा विश्वास है कि मैं दिल्लीमें अपना काम दो दिनमें ही पूरा कर लूंगा। उसके बाद मैं लंका जाना चाहता हूँ। वहाँसे लौटनेपर अगर मुझे समय मिला और सुविधा हुई तो मैं आपके जिलेमें अपना सारा कार्यक्रम पूरा करूंगा।

लंका जाकर वहाँ मेरे लिए जो कार्यक्रम बनाये गये हैं मैं उन सबको पूरा करना चाहता हूँ। यहाँकी तरह मुझे लंकाके दरिद्रनारायणकी भी सेवा करनी है।

  1. १. इस भाषणका गंगाधरराव देशपाण्डेने कन्नड़ में अनुवाद किया था ।