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कपासकी लामदायक खेती

करनेवालोंके निकट सम्पर्कमें आना होगा, क्योंकि शहरकी जरूरत खादी तैयार करनेके लिए भी कपास पैदा करनेवाले किसानोंके साथ सम्बन्ध जोड़ना और, जैसा कि आज चलता है, बाजारमें खरीदनेके बदले सोधे उन्हींसे रुई खरीदना जरूरी है। अगर हमें सटोरियोंसे और बाजार भावके उतार-चढ़ावसे स्वतन्त्र होना है और खादीका मूल्य स्थिर करना है तो हमें किसानसे सरोकार पैदा करना होगा और उसे इस बात के लिए राजी करना होगा कि वह हमारे साथ सीधा सौदा करे । खादीकी जितनी ही अधिक उन्नति होगी, हम देखेंगे कि व्यापार जगतमें हमें अपने तरीकोंको प्रचलित तरीकोंसे भिन्न करना होगा। व्यापार जगतका विश्वास है कि अधिकसे-अधिक दामपर माल बेचा जाये, और सस्तेसे-सस्ता खरीदा जाये । आज संसारका व्यापार न्यायके नियमपर नहीं चलता । उसका मूल मन्त्र है, “खरीदारो सावधान " । खादी अर्थशास्त्रका मूलमन्त्र है "सबके लिए एक-सा न्याय । इसलिए खादीमें आत्माका हनन करनेवाली वर्तमान होड़ा-होड़ीके लिए कोई जगह नहीं है। खादीके अर्थशास्त्रका उद्देश्य गरीब और असहाय लोगोंको सहायता देना है और खादी उसी हृदतक सफल होगी, जिस हदतक उसके कार्यकर्त्ता जन-साधारणमें प्रवेश करके उसका विश्वास प्राप्त कर सकेंगे। उनका विश्वास पानेका एकमात्र रास्ता है स्वार्थ रहित होकर उनकी सेवा करना ।

पत्रलेखककी यह बात बेशक सच्ची है कि कपासकी खेती करनेवाले किसानों द्वारा कपास जमा कर रखने, और दूसरे किसानों द्वारा अपनी जरूरत-भरकी कपास पैदा करनेके मामलेमें देशी रियासतोंको ज्यादा सुविधाएँ हैं। मगर अन्ततः सवाल तो यह है कि बिल्लीके गलेमें घंटी कौन बाँधे ? अधिकांश रियासतोंको किसानोंके मले-बुरेकी चिन्ता ही नहीं है। अभी तो उनके जीवनका एक यही उद्देश्य मालूम पड़ता है कि चाहे जैसे हो, राज्यकी आमदनी किसी भी कीमतपर यथासम्भव बढ़ाई जाये, और उसका अधिकसे-अधिक भाग अपने मौज-मजेमें उड़ाया जाये। इसके सिवा, अन्य पूंजीपतियोंकी भाँति ही खादीके अर्थशास्त्र में उनको कोई विश्वास नहीं है। मैसूरमें ग्रामोद्योगके रूपमें खादीकी उपयोगिताकी जाँच करनेके लिए बहुत सतर्कतासे एक प्रयोग चल रहा है। हम आशा कर सकते हैं कि अगर यह प्रयोग शास्त्रीय रीतिसे धैर्यपूर्वक किया गया और सफल हुआ तो उसका अनुकरण सभी करने लगेंगे ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २७-१०-१९२७