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पत्र : मणिलाल व सुशीला गांधीको

मृदुतासे पेश आया, लेकिन उनके ढंगमें कुछ अजीबपन और एक अस्वाभाविकता थी जिससे मुझे कष्ट हुआ। मैं चाहता हूँ कि तुम उससे सम्पर्क बढ़ाओ और इस अशान्त मनःस्थितिसे निकलने में उसकी मदद करो। लेकिन उसके साथ बहुत स्नेह और साव- धानीका व्यवहार करनेकी जरूरत है।

मैं कल (सोमवारको) शायद नहीं लिखूँगा, क्योंकि [स्टीमर ] कहीं रुकेगा नहीं जहाँसे पत्र डाकमें डाला जा सके। पत्रोंके उत्तर देनेका काम पूरा करने के लिए आज मैंने विशेष रूपसे मौन रखा है।

सस्नेह,

बापू

अंग्रेजी (सी० डब्ल्यू० ५२९१) से ।
सौजन्य : मीराबहन

१४७. पत्र : मणिलाल व सुशीला गांधीको

६ नवम्बर, १९२७

चि० मणिलाल व सुशीला,

तुम्हारे पत्र मिलते रहते हैं, किन्तु इन्हें मैं व्यवहार बनाये रखने या वचनका पालन करनेके लिए लिखे गये पत्र मानता हूँ। मैं अपने बुजुर्गोंको जो पत्र लिखता था वे इस तरह नहीं लिखता था बल्कि उन पत्रोंमें मैं अपने रहन-सहनका विवरण दिया करता था । ३२ वर्षकी मीराबहन आज भी हफ्ते में दो-चार पत्र लिख पाती है, वे भी १०-१०, २०-२०, पन्नोंके होते हैं। वह अपनी माँको भी हर हफ्ते जो पत्र लिखती है उसमें भी वह अपना कलेजा निकालकर रख देती है। तुम दोनोंमें से किसी एकको तो समय मिलना ही चाहिए। तुम्हारा प्रेस कैसा चल रहा है, तुम्हारी क्या-क्या दिक्कतें हैं, तुम्हारा खर्च बढ़ा या घटा, अखबारके कितने ग्राहक हैं आदि बहुत-सी बातोंके बारेमें तुम यदि लिखना चाहो तो लिख सकते हो, और यदि चाहो तो वहाँकी सामाजिक और राजनैतिक स्थितिका हाल भी लिख सकते हो जिसका मैं यथासमय उपयोग भी कर सकता हूँ ।

सुशीला क्यों पनप नहीं पा रही है ? क्या वह खुराक पचा लेती है ? क्या खाती है ? कितना दूध पीती है ? तुम्हें गायका ताजा दूध मिल पाता है न ? आजकल सुशीला प्रेसमें कितना काम कर पाती है ?

मैं शायद इस बारकी डाक चूक जाता; किन्तु भगवानने बचा ही दिया। आज ही मुझे समुद्री रास्ते से कोलम्बोके लिए रवाना होना था। वहाँसे मैं दक्षिण आफ्रिका- मेल नहीं पकड़ सकता था। आज रविवार है और मेल बुधवारको चलता है।