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१५८. क्या वह विफल रहा ?

अखबारोंमें अकसर ही पढ़नेको मिलता है कि असहयोग आन्दोलन पूर्ण रूपसे विफल रहा। कई शिष्ट आलोचक अकसर बातचीत में कुछ संकोचके साथ इसकी चर्चा छेड़ देते हैं और मुझे नरमीसे बतलाते हैं कि अगर मैंने देशको अपने नासमझी-भरे असहयोग आन्दोलनके जरिये गुमराह न कर दिया होता तो उसने बहुत जबर्दस्त उन्नति कर ली होती । इस विषयका आजकी राजनीतिसे कोई सम्बन्ध नहीं है, इस- लिए यदि मुझे इस बातका विश्वास न होता कि असहयोग हमें एक सक्रिय शक्तिके रूपमें प्राप्त हुआ है जो एक दिन सर्वव्यापी हो जा सकता है तो मैं इस विषयकी चर्चा न करता । साथ ही मेरा उद्देश्य उन लोगोंको आश्वस्त करनेका भी है जो आलोचनाओं और शंकाओंका सामना करते हुए बहादुरीके साथ असहयोगके पक्षमें दृढ़तापूर्वक बने हुए हैं। तथापि मैं इस खतरनाक अर्द्धसत्यको स्वीकार करता हूँ कि हिंसात्मक होते ही असहयोग आन्दोलन बिलकुल विफल हो गया । वस्तुतः यहाँ असह- योग और हिंसा दो परस्पर विरोधी शब्द हैं। यह एक जीवन्त धारणा है कि हिंसा हिंसापर ही जीवित रहती है और अपने अस्तित्वके लिए उसे हर क्षण प्रतिहिंसा- की भावनाकी आवश्यकता होती है। इसी धारणाने अहिंसापूर्ण असहयोगको जन्म दिया। इसलिए तथ्य यह है कि जिस क्षण असहयोग हिंसात्मक हो गया, उसने अपनी शक्ति और राष्ट्रनिर्माणकारी स्वरूप खो दिया। लेकिन जिस हदतक वह अहिंसा- त्मक था और रहा, उस हदतक वह पूर्ण सफल रहा, जिसे देखा जा सकता था । १९२० में सहसा ही जो जन-जागृति हुई, वह अहिंसाकी प्रभावकारिताका शायद सबसे बड़ा प्रमाण था। सरकारने जो प्रतिष्ठा खोई है, वह उसे फिरसे प्राप्त नहीं हो सकती । उपाधियाँ, अदालतें, शिक्षण संस्थाएँ अब मनमें वह आदर मिश्रित भय नहीं उत्पन्न करतीं जो वे १९२०में करती थीं। देशके कुछ सबसे अच्छे वकीलोंने वकालत- का पेशा हमेशाके लिए छोड़ दिया है और उसके बदले अपेक्षाकृत गरीबीका जीवन अपनाकर वे खुश हैं। जो थोड़ेसे राष्ट्रीय स्कूल और कॉलेज बच रहे हैं उन्होंने बहुत अच्छा काम किया है। जब गुजरात-रूपी समृद्ध उद्यानको बाढ़ने तबाह कर दिया था उस समय इस विपत्तिसे जूझनेके लिए जो महान संगठन कायम हो गया, वह उसका एक प्रमाण है। यदि राष्ट्रीय शालाओंके छात्र और अध्यापक तथा अन्य असह- योगी कार्यकर्ता न होते तो गुजरातके संकटग्रस्त किसानोंको ठीक समयपर जो सहायता मिली और जिसकी उन्हें बहुत जरूरत थी, वह सहायता उन्हें कभी न मिल पाती । इस प्रकारके बहुत से उदाहरण दिये जा सकते हैं और यह सिद्ध किया जा सकता है कि भारत में जो भी वास्तविक राष्ट्रीय जीवन है, विशिष्ट वर्गों और जन-साधारणके बीच जो एक सम्बन्ध है, वह असहयोगके ही कारण है।

फिर कार्यक्रमके तीन रचनात्मक मदोंको लीजिए। राष्ट्रीय पुनरुद्धारमें खादी दिनोंदिन अधिकाधिक योग दे रही है और वह करीब दो हजार कार्यकर्त्ताओंकी फौजके