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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

महंतसे कोई समझौता भी कर लेनेके लिए बनाई जो इस समय मन्दिरपर कब्जा किये हुए है। उस समितिने अपनी रिपोर्ट दे दी है और मैं यह मान लेता हूँ कि आपमें से कुछ लोगोंने उसे देखा भी है । समितिने पंच मुक़र्रर करानेकी कोशिश की, किन्तु इसमें वह असफल रही। मगर निराश होनेकी कतई वजह नहीं है। खैर, मैं आपसे यह कह सकता हूँ कि मेरी व्यक्तिगत सहानुभूति बिलकुल आपके साथ है और अगर यह मेरे बसकी बात होती तो मैं आज ही आपको मन्दिर सौंप देता। आपके अभिनन्दन- पत्रमें लंकाके किसी मन्दिरका भी जिक्र था। इस मन्दिरके बारेमें जो विवाद है, उसके विषयमें मैं कुछ नहीं जानता। इसलिए मैं चाहता हूँ कि आपमें से कोई उस मन्दिरके बारेमें सारी बातें मुझे बताये और यह भी बताये कि जबतक मैं यहाँ हूँ, उस बीच मैं उसके बारेमें क्या कुछ कर सकता हूँ । आप इस बारेमें निश्चिन्त रहें कि अगर मुझे ऐसा लगा कि इसके बारेमें मैं कुछ कर सकता हूँ तो वह करूंगा और यह आपपर कोई एहसान करनेके लिए नहीं, बल्कि अपने मनके सन्तोष के लिए करूँगा ।

आपको शायद पता नहीं है कि मेरे बड़े लड़केने मुझपर बौद्ध होनेका इल्जाम लगाया था और मेरे कुछ हिन्दू देशवासी भी यह कहनेमें नहीं हिचकते कि मैं सना- तन हिन्दू धर्मकी आड़ में बौद्ध धर्मका प्रचार कर रहा हूँ। मेरे लड़के द्वारा लगाये आरोप और हिन्दू मित्रोंके इल्जामके प्रति मेरी सहानुभूति है। और कभी-कभी मैं बुद्धका अनुयायी होनेके इल्जाममें गर्वका अनुभव भी करता हूँ और इस सभामें मुझे आज यह कहनेमें जरा भी हिचक नहीं है कि मैंने बुद्धके जीवनसे बहुत कुछ प्रेरणा पाई है। कलकत्तेके नये बौद्ध मन्दिरमें किसी वार्षिकोत्सवपर मैंने यही खयाल जाहिर किये थे। उस सभाके नेता थे अनागारिक धर्मपाल । वे इस बातपर रो रहे थे कि उनके प्रिय कार्यकी ओर लोग ध्यान नहीं देते और मुझे याद है कि इस रोनेके लिए मैंने उन्हें बुरा-भला कहा था। मैंने श्रोताओंसे कहा कि बौद्ध-धर्मके नामसे प्रचलित चीज भले ही हिन्दुस्तानसे दूर हो गई हो, मगर बुद्ध भगवानका जीवन और उनकी शिक्षाएँ तो हिन्दुस्तानसे दूर नहीं हुई हैं। यह बात शायद तीन साल पहलेकी है और अब भी मैं अपने उस मतमें कोई फेरबदल करनेकी वजह नहीं देखता। गहरे विचारके बाद मेरी यह धारणा बनी है कि बुद्धकी शिक्षाओंके प्रधान अंग आज हिन्दूधर्मके अभिन्न अंग हो गये हैं। गौतमने हिन्दूधर्ममें जो सुधार किये, उनसे पीछे हटना आज हिन्दू-भारतके लिए असम्भव है। अपने महान त्याग, अपने महान वैराग्य और अपने जीवनकी निर्मल पवित्रतासे गौतम बुद्धने हिन्दूधर्मपर अमिट छाप डाली है और हिन्दूधर्म उस महान शिक्षकसे कभी उॠण नहीं हो सकता। और अगर आप मुझे क्षमा करें और कहनेकी अनुमति दें तो मैं कहूँगा कि हिन्दूधर्मने आजके बौद्ध धर्मका जो अंश आत्मसात् नहीं किया है, वह बुद्धके जीवन और शिक्षाओंका मुख्य अंश ही नहीं था ।

मेरा यह दृढ़ विश्वास है कि बौद्ध-धर्म, या कहिए बुद्धकी शिक्षाएँ हिन्दुस्तानमें पूरी तरह फलीभूत हुईं। और इसके सिवा दूसरा कुछ हो भी नहीं सकता था, क्योंकि