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भाषण : तंजौर में

लाभ होते हों, च्युत करना चाहूँगा । जिस क्षण कोई ब्राह्मण भौतिक लाभके पीछे पड़ जाता है, उसी क्षणसे वह ब्राह्मण नहीं रह जाता। लेकिन, जहाँ कहीं उसमें विद्वत्ता देखूंगा, वहाँ में उसके खिलाफ कुछ नहीं करना चाहूँगा । यह ठीक है कि उसे अपनी विद्वत्ताके कारण श्रेष्ठताका दावा नहीं करना चाहिए, किन्तु साथही-साथ मुझे भी विद्वत्ताको वह सम्मान देने से नहीं चूकना चाहिए जिस सम्मानका अधिकार उसे सर्वत्र है। लेकिन, इतने बड़े श्रोता- समुदाय के सामने मुझे इस विषयपर इससे ज्यादा गहरी चर्चामें नहीं उतरना चाहिए ।

आखिरकार मुझे तो उसी एक रामबाण उपायका सहारा लेना है जिसे मैं जीवनकी सभी बुराइयोंका उपचार मानता हूँ। और वह यह है कि हम जो भी लड़ाई लड़ें, हमारी लड़ाई शुद्ध होनी चाहिए; हमें सत्य और अहिंसासे तनिक भी विचलित नहीं होना चाहिए। और अगर हम अपनी गाड़ीको इन दो पटरियोंपर चलाते रहेंगे तो आप पायेंगे कि हमारी लड़ाईमें चाहे हम हजार गलतियाँ ही क्यों न करें. - शुद्धताकी सुगन्ध होगी और उसे लड़ना हमारे लिए सुगम होगा। और जिस प्रकार कोई रेलगाड़ी पटरियोंसे उतर जानेपर नष्ट हो जाती है उसी प्रकार यदि हम इन दो पटरियोंपर से हट जाते हैं तो नाशको प्राप्त होंगे। जो व्यक्ति सत्यवादी है और अपने प्रतिरोधीका भी बुरा नहीं चाहता, वह अपने शत्रुओंके खिलाफ लगाये आरोपोंको भी आसानीसे नहीं मानेगा। लेकिन, वह अपने शत्रुके दृष्टिकोणको समझनेकी कोशिश करेगा और सदा अपना दिमाग खुला रखेगा तथा बराबर अपने शत्रुओंकी सेवा करनेके अवसरकी ताकमें रहेगा। मैंने इस नियमको दक्षिण आफ्रिका में और यहाँ भी अंग्रेजों और आम तौरपर यूरोपीयोंपर आजमाकर देखा है और उसमें मुझे सफलता भी मिली है। फिर आप ही सोचिए कि अपने घरों, अपने सम्बन्धियों, अपने घरेलू मामलों और अपने आत्मीय जनोंपर इस नियमको लागू करना हमारे लिए कितना ज्यादा जरूरी है ?

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, २९-९-१९२७