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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

एक महत्त्वपूर्ण विषय है जिसकी मैं आपके साथ चर्चा करना चाहता हूँ। एक मित्रने आज सुबह मुझे बताया कि इस जगह सैकड़ों करघोंपर काम हुआ करता था, और मुझे दुखपूर्वक कहा कि विदेशी कपड़े और विदेशी सूतका आयात होनेके कारण ये सारे करघे बन्द पड़े हैं और यह पुराना उद्योग इस जिलेमें लगभग समाप्त- प्राय ही है ।

मैंने इस मित्रको बता दिया है कि यदि वह रुई साफ करनेसे लेकर कताई तककी सारी प्रक्रियाओंको सिखानेके लिए विशेषज्ञोंकी सहायता चाहते हैं, तो यह सहायता उन्हें लंकामें ही प्राप्त हो सकती है। कोलम्बोके निकट ही एक परिवार है जिसने पहले ही सारी प्रक्रियाएँ सीख ली हैं और वह अपना कपड़ा कच्ची रुईसे तैयार करता है ।

इसमें कोई सन्देह नहीं है कि यदि इस सुन्दर द्वीपमें वास्तवमें जरूरतमन्द स्त्री-पुरुष हैं तो इससे अच्छी बात और कोई नहीं हो सकती कि आप अपना ही कता और बुना कपड़ा पहनें। इसलिए मैं आशा करता हूँ कि आप इन रेवरेंड महोदयके काम और उसकी प्रगतिके लिए अपनी हार्दिक सहायता प्रदान करेंगे और वह जो उद्यम और कौशल आपके उपयोगके लिए प्रस्तुत करेंगे उसका उपयोग करेंगे ।

आज तीसरे पहर एक सज्जनने मुझे बताया कि आपके यहाँ इस प्रकारका सामाजिक कार्य या किसी भी प्रकारका राजनीतिक कार्य करनेवाली कोई संस्था या संगठन नहीं है । और निश्चय ही मुझे इस बातसे बहुत अधिक खुशी होगी कि इस सभाका एक परिणाम यह हो कि आप एक ऐसा संगठन बना लें, जिसका संचालन निःस्वार्थ कार्यकर्ता करें ।

एक और मित्र मेरे पास आये और मुझसे पूछा कि लंकाके लोगोंके लिए चरखेका क्या सन्देश है। उन्होंने मुझे बताया कि इस द्वीपमें भी ऐसे स्त्री-पुरुष हैं जिन्हें कामकी जरूरत है, और मेरी पूछताछके जवाबमें उन्होंने बताया कि वे मुझसे कोई ऐसा रास्ता जानना चाहते थे जिसके जरिये इस सुन्दर द्वीपके नवयुवकोंको जल्दबाजी में और बिना अच्छा-बुरा समझे पश्चिमकी हर चीजकी नकल करनेसे रोका जा सके।

एक चौथे मित्रने मुझे लिखा है कि मैं लंकाकी कुछ स्त्रियोंको जो सुन्दर वस्त्र पहने देखता हूँ और बहुत सारे नवयुवकोंको यूरोपीय शैलीके बढ़िया वस्त्र पहने देखता हूँ उससे मैं ऐसा न मान लूँ कि ऐसे वस्त्र पहननेवाले लोगोंके पास बहुत धन है। यह पत्रलेखक मुझे बताता है कि बढ़िया वस्त्रोंमें सजे हुए इन आदमियोंमें से बहुतसे लोग अपने आपको, मुझे कहते हुए दुख होता है, चेट्टि या पठान सूदखोरोंके चंगुलमें पाते हैं ।

तो, चरखा इस वर्गके सभी लोगोंके लिए एक सन्देश देता है। उस क्षुधा-पीड़ित पुरुष या स्त्रीसे जिसके पास करनेको शायद कोई काम नहीं है, चरखा कहता है: "कताई करो, और तुम्हें कमसे-कम रोटीका एक सूखा टुकड़ा मिल जायेगा।"

यह तो चरखेका आर्थिक सन्देश है, लेकिन उसके पास सभी लोगोंके लिए एक सांस्कृतिक सन्देश भी है। चरखा सांस्कृतिक ढंगसे आपसे और मुझसे कहता है: