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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

मैं इस जिलेमें मजदूरोंके मालिकोंसे नम्रतापूर्वक निवेदन करूंगा कि उन्हें अपने कर्मचारियोंके कल्याणके लिए अपने आपको न्यासी मानना चाहिए और उन्हें शराबकी लतसे बचानेकी कोशिश करनी चाहिए। मेरी नम्र रायमें इन मालिकोंका यह निश्चित कर्तव्य है कि वे अपने पास-पड़ोसकी हर कैन्टीनको बन्द कर दें और अपने कर्म- चारियोंके सामनेसे ऐसा हर प्रलोभन हटा दें। मैं निजी अनुभवसे यह बात कह सकता हूँ कि यदि वे अपने आदमियोंके लिए बढ़िया उपहारगृह खोल देंगे और उनके लिए सभी प्रकारके निर्दोष खेलोंकी व्यवस्था कर देंगे तो वे पायेंगे कि इन आदमियोंको इस नशीले पेयकी कोई आवश्यकता नहीं होगी।

कैण्डीसे इस स्थानके लिए आते हुए मुझे ऐसी सुन्दर दृश्यावलि देखनेको मिली जो मुझे बहुत कम देखनेको मिली है। जहाँ प्रकृति इतनी उदार रही है, और जहाँ प्रकृति आपको अपने आसपास इस भव्य दृश्यावलिके रूपमें इतनी निर्दोष मादकता प्रदान करती है, वहाँ स्त्री-पुरुषोंके लिए चमकदार किन्तु घातक शराबसे नशा प्राप्त करना निश्चय ही अपराध है। मैं बुद्धके अनुयायियोंसे कहता हूँ कि यह विचार करना बुद्धकी शिक्षाके विरुद्ध है कि बुद्धकी पूजा करनेवाले लोग शायद शराब पी सकते हैं।

मुझे यह सुनकर गहरा दुख हुआ कि आपमेंसे बहुतसे लोग, जो बौद्ध धर्मके माननेवाले हैं, अस्पृश्यताके अभिशापका पालन करते हैं। मुझे एक बहुत बड़े अफसरसे पता चला कि आप कुछ बौद्ध लोग इसे अपमानकी बात समझते हैं कि कोई अस्पृश्य स्त्री कमरसे ऊपर कोई वस्त्र पहने। मुझे बिना विरोधके भयके यह कहनेमें कोई संकोच नहीं है कि यदि आप अस्पृश्यतामें विश्वास करते हैं तो आप बुद्धकी शिक्षासे बिलकुल इनकार करते हैं। बुद्ध, जो तुच्छतम प्राणीको अपने समान ही प्रिय मानते थे, वे मनुष्य मनुष्यके बीच इस निद्य भेदभावको और एक मी मनुष्यको अस्पृश्य मानना कभी बर्दाश्त नहीं कर सकते थे।

मुझे यह जानकर भी उतना ही दुख हुआ कि आप हिन्दू लोग भी इस अभि- शापको भारतमें ही पीछे नहीं छोड़ आये हैं बल्कि लंकामें प्रवेश करनेके बाद भी इसे अपने साथ ले आये हैं। मेरी हार्दिक इच्छा है कि लंकामें रहनेवाले बौद्ध और हिन्दू प्रयत्नपूर्वक इस अभिशापको अपने बीचसे खत्म कर दें।

मुझे एक-दो वाक्य एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण चीजके बारेमें भी कहते हैं जिसे मैं लगभग भूल गया था ।

कोलम्बोमें मुझे एक पत्र मिला था जिसमें मुझे बताया गया था कि बागानों और बड़े-बड़े कारखानोंमें स्त्री-पुरुषोंका जीवन उतना शुद्ध नहीं है जितना होना चाहिए । पत्रमें आगे कहा गया था कि स्त्री-पुरुषोंके सम्बन्ध भी वैसे नहीं हैं जैसे होने चाहिये ।

जो चीज मनुष्यको पशुसे मुख्य रूपसे अलग करती है, वह यह है कि मनुष्य होश सम्हालनेके बादसे अनवरत आत्म-संयमका जीवन व्यतीत करने लगता है। ईश्वरने मनुष्यको इस योग्य बनाया है कि वह अपनी बहन, अपनी माँ, अपनी पुत्री और अपनी पत्नीमें भेद कर सके। एक क्षणके लिए भी ऐसा मत सोचिए कि चूंकि आप लोग मजदूर हैं इसलिए आप लोगोंको इन आवश्यक भेदों और प्रतिबन्धोंको न माननेकी