पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३४२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३१४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

हुई है, उसका तकाजा है कि किसीको किसीसे बड़ा नहीं मानना चाहिए। सब उसी एक परम पिताके पुत्र और पुत्रियाँ हैं।

और अन्तमें मैं आपसे यह अनुरोध करूँगा कि आप तिरनागम महिला संघके उदाहरणका अनुकरण करें और इस प्रकार अपने दानको गरिमा प्रदान करें और मेरे प्रति व्यक्त किये गये अपने स्नेह-सौहार्दकी शोभा बढ़ायें। उस संघने हिक्कडुवामें मेरा स्वागत करते हुए मुझे यह सूचित किया था कि वह महिलाओंके बीच खद्दरको लोकप्रिय बनानेके लिए एक प्रचार आन्दोलन प्रारम्भ करने जा रहा है।

मुझे यह देखकर बड़ी खुशी हो रही है कि भारतके करोड़ों अभावग्रस्त लोगोंकी दशा सुधारनेमें मेरी सहायता करनेके लिए बौद्ध, हिन्दू, मुसलमान और ईसाई, सब एक साथ मिलकर सामने आये हैं। मैं ईश्वरसे यही प्रार्थना करता हूँ कि जिस प्रकार एक होकर आपने इस अवसरपर काम किया है उसी प्रकार एक होकर अपनी मातृभूमिके कल्याण के लिए भी काम कर सकें ।

[ अंग्रेजीसे ]
विद गांधीजी इन सीलोन

२०६. भाषण : महिन्द कालेज, गैलेमें

२४ नवम्बर, १९२७

इस अत्यन्त आनन्ददायक समारोहमें[१] उपस्थित होकर मुझे अत्यन्त हर्षका अनुभव हो रहा है। इस समारोहकी कार्यवाहियोंको देखने और बहुत सारे लड़कोंसे परिचय प्राप्त करनेका अवसर देकर आपने वास्तवमें मेरा बहुत बड़ा सम्मान किया है।

मैं आशा करता हूँ कि इस संस्थाका उत्तरोत्तर विस्तार होगा, और मुझे इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि यह इस योग्य है। इस सुन्दर द्वीप और यहाँके लोगोंके बारेमें मैं इतना तो जान ही गया हूँ कि कह सकूं कि इस देशमें बौद्ध लोग इतनी बड़ी संख्यामें मौजूद हैं कि वे न केवल इस एक संस्थाको, बल्कि ऐसी बहुत-सी संस्थाओं- को चला सकते हैं। इसलिए, मैं आशा करता हूँ कि आर्थिक सहायताका अभाव कभी भी इस संस्थाके मार्गमें बाधक नहीं होगा। किन्तु, चूँकि मैं दक्षिण आफ्रिका और भारतकी शिक्षण संस्थाओंके बारेमें कुछ जानकारी रखता हूँ, इसलिए आपसे कहूँगा कि साहित्यिक शिक्षाके लिए सिर्फ ईंट और गारेकी बनी बढ़िया इमारत ही काफी नहीं है। वास्तविकता यह है कि जो ऐसी संस्थाओंका दिन-प्रतिदिन निर्माण करते हैं, वे हैं इनसे सम्बद्ध सच्ची वृत्तियोंवाले लड़के और लड़कियाँ। मैं वास्तुकलाकी दृष्टिसे सर्वथा निर्दोष ऐसे विशाल भवनोंको भी जानता हूँ जो नामके लिए तो शिक्षण संस्थाएँ हैं, लेकिन वास्तवमें वे पाखण्डकी प्रतिमूर्तियाँ हैं। इसके विपरीत मैं ऐसी संस्थाओंको भी जानता हूँ जो साधनोंके अभावमें प्रतिदिन अपना अस्तित्व बनाये रखनेके लिए

  1. १. पुरस्कार वितरण समारोह |