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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

करूंगा कि आपकी संस्थाको उन्हें पुनः प्रतिष्ठित करना चाहिए। मैं जानता हूँ कि भारतके कई बहुत अच्छे देशी खेल हैं। वे क्रिकेट और फुटबालकी ही तरह रोचक और उत्साहवर्धक हैं। उनमें खतरे भी उतने ही रहते हैं। और ऊपरसे उनकी एक खूबी यह है कि वे व्ययसाध्य नहीं होते, क्योंकि उनपर लगभग कोई खर्च नहीं बैठता ।

पुरातन " के नामपर चलनेवाली हर चीजका मैं अन्धभक्त नहीं हूँ। कोई चीज चाहे जितनी भी प्राचीन हो, यदि उसमें कोई बुराई या अनैतिकता है तो उसे मिटानेमें मैं कभी संकोच नहीं करता। लेकिन, इतना तो मैं स्वीकार करूंगा कि मैं प्राचीन रीति-रिवाजोंका भक्त हूँ और यह सोचकर मुझे बड़ा दुःख होता है कि लोग आधुनिकताकी आपाधापीमें पड़कर अपनी पुरानी परम्पराओंसे घृणा करने लगते हैं और अपने जीवनमें उनका आचरण करनेकी कोई परवाह नहीं करते ।

हम प्राच्य लोग उतावलीमें अक्सर ऐसा मान बैठते हैं कि हमारे पूर्वज हमारे लिए जो-कुछ विधान कर गये, वे अन्धविश्वासोंके अलावा और कुछ नहीं थे। लेकिन, प्राच्य संसारकी अमूल्य निधियोंके अपने दीर्घकालके अनुभवके बलपर मैं इसी निष्कर्षपर पहुँचा हूँ कि यद्यपि उनमें बहुत-सी बातोंका अन्धविश्वासपूर्ण होना भी सम्भव है, किन्तु उससे कहीं अधिक बातें ऐसी हैं जो न केवल अन्धविश्वासपूर्ण नहीं हैं, बल्कि यदि हम उन्हें ठीकसे समझें और उनका आचरण करें तो वे हमारे लिए जीवनदायिनी और हमारी वृत्तियोंको ऊर्ध्वमुखी करनेवाली साबित होती हैं। इसलिए, पश्चिमकी जादुई चकाचौंधमें हमें अपनी आँखें बन्द नहीं कर लेनी चाहिए ।

लेकिन, मैं एक बार फिर आपसे यह कह देना चाहता हूँ कि आप ऐसा माननेकी मूल न करें कि मैं पश्चिमकी हरएक चीजसे घृणा करता हूँ । पश्चिमवालोंके बहुतसे गुणोंको तो खुद मैंने ही ग्रहण किया है। वांछनीय और अवांछनीय, सही और गलतके बीच भेद कर सकनेकी मनुष्यको क्षमताके लिए संस्कृतमें एक बहुत ही अर्थ-गर्मित और सटीक शब्द है वह है " विवेक" । अंग्रेजी में इसका निकटतम पर्याय "डिस्क्रिमिनेशन " है। मुझे उम्मीद है कि आप पाली और सिहलीमें इस शब्दको स्थान देंगे ।

आपके पाठ्यक्रमके बारेमें मैं एक बात और कहना चाहूँगा। मैंने शिल्प और दस्तकारियोंके बारेमें कुछ सुननेकी आशा की थी। यदि आप अपने यहाँके लड़कोंको शिल्प और दस्तकारीके काम सिखानेपर विशेष ध्यान न दे रहे हों, और अगर अब भी समय हो तो मैं आपसे निवेदन करूंगा कि शिल्प और दस्तकारीके जिन कार्योंसे इस द्वीपके लोग परिचित हों, ऐसे आवश्यक कार्योंको पाठ्यक्रममें अवश्य दाखिल किया जाये । निश्चय ही, इस संस्थासे निकलनेवाले सभी लड़के सरकारी कार्यालयोंमें क्लर्क या नौकर होनेकी आशा नहीं करेंगे और न वे होना ही चाहेंगे । यदि वे राष्ट्रकी शक्तिको बढ़ाना चाहते हों तो उन्हें पूरे मनोयोग और कौशलसे देशी शिल्पों और दस्तकारियोंको सीखना चाहिए; और सांस्कृतिक प्रशिक्षण के रूप में तथा गरीबसे गरीब लोगोंके साथ तादात्म्य स्थापित करनेके प्रतीकके रूपमें मुझे हाथ-कताईसे अधिक उदात्त दस्तकारी और कोई नहीं जान पड़ती। यह बहुत सीधा-सादा काम है और इसलिए इसे आसानीसे सीखा जा सकता है। यदि आप हाथकताईके साथ इस विचारको भी मिला दीजिए