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भाषण : छात्र-कांग्रेसकी सभा, जफनामें

देशका ध्यान रहता है जिसे आप गर्वके साथ अपनी मातृभूमि कहनेमें हर्ष महसूस करते हैं, और जो सर्वथा उचित है।

मैं यह कहनेकी वृष्टता करता हूँ कि हिन्दू संस्कृतिमें बौद्ध संस्कृति भी आवश्यक रूपसे सम्मिलित है। इसका सीधा-सा कारण यह है कि स्वयं बुद्ध एक भारतीय थे और भारतीय ही नहीं, वे हिन्दुओंमें एक श्रेष्ठतम हिन्दू थे। गौतमकी जीवनीमें मुझे ऐसी कोई बात नहीं मिली जिसके आधारपर कहा जा सके कि उन्होंने हिन्दू-धर्म त्यागकर कोई अन्य धर्म अपना लिया था । मेरा काम और भी आसान हो जाता है जब मैं सोचता हूँ कि स्वयं ईसा भी तो एक एशियाई ही थे । इसलिए अब हमारे विचारके लिए प्रश्न यह होना चाहिए कि एशियाई संस्कृति या प्राचीन एशियाई संस्कृति क्या है। और इस तरह देखा जाये तो मुहम्मद भी तो एशियाई ही थे । चूँकि आप प्राचीन संस्कृतिके उन सभी तत्त्वों या उपादानोंका ही तो पुनरुद्धार करना चाहेंगे जो उच्चादर्शपूर्ण हैं और जिनका स्थायी महत्त्व है; इसलिए आप किसी भी ऐसे उपादानका पुनरुद्धार तो कर ही नहीं सकते जो इनमें से किसी भी धर्मके विरुद्ध पड़ता हो । अब प्रश्न यह बनता है : पता लगाया जाये कि वह कौन-सा तत्त्व या उपादान है जो इन सभी महान धर्मोमें सर्वाधिक रूपसे समान पाया जाता है। और इस प्रकार सभी उच्चादर्शपूर्ण उपादानोंकी विवेचना करनेपर आपको जो सर्वाधिक सहज और स्पष्ट उपादान मिलेगा वह है सत्यवादिता और अहिंसा -- इसलिए कि सत्य, निष्ठा और अहिंसा ही इन सभी महान धर्मोमें समान रूपसे मौजूद रही हैं। जाहिर है कि आप उन अनेक रीति-रिवाजोंका पुनरुद्धार तो नहीं ही चाहेंगे जिनको आप और हम अब कभीके भूल चुके हैं और जो कभी किसी समयमें हिन्दू धर्म में शामिल थे। मुझे याद पड़ता है कि न्यायमूर्ति स्वर्गीय रानडेने प्राचीन संस्कृतिके बारेमें बोलते हुए एक अत्यन्त ही मूल्यवान विचार व्यक्त किया था। उन्होंने श्रोताओंसे कहा था कि उनमें से किसी भी एक व्यक्तिके लिए यह बतलाना कठिन होगा कि प्राचीन संस्कृतिका ठीक-ठीक रूप वास्तवमें क्या था; और वह संस्कृति कबसे प्राचीन न रहकर आधुनिक बनने लगी थी। उन्होंने यह भी कहा था कि कोई भी विवेकशील व्यक्ति किसी भी चीजको केवल इसलिए प्रमाण नहीं मान लेगा कि वह प्राचीन है। संस्कृति प्राचीन हो या आधुनिक, उसे तर्क और अनुभवकी कसौटीपर खरा तो उतरना ही चाहिए। मैं इस छात्रसंघके विद्यार्थियोंको यह चेतावनी इसलिए दे रहा हूँ क्यों कि वे देशके भाग्य-विधायक हैं और आज हमारे इस देशमें ही नहीं बल्कि सारे संसारमें अनेक प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ हमारे चारों ओर सिर उठा रही हैं। भारतके अपने अनुभवसे मैं कह सकता हूँ कि प्राचीन संस्कृतिके पुनरुद्धारकी दुहाई देनेवाले अनेक व्यक्ति पुनरुद्धारकी आड़में प्राचीन अन्धविश्वासों और पूर्वग्रहोंको पुनः जीवित करने में भी कोई संकोच नहीं करते ।

गांधीजी धीमे स्वरमें बोल रहे थे और उनका भाषण दोहराया जा रहा था तथा उसका अनुवाद करने की जरूरत पड़ रही थी इसलिए क्षमा माँगते हुए उन्होंने कहा :

मैं आपको अपने अनुभवकी बात बतला रहा था। मैं बतला रहा था कि हमारी मातृभूमिमें ही कुछ प्रतिक्रियावादी शक्तियाँ सक्रिय हो गई हैं। प्राचीन परम्पराओं और