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भाषण : छात्र-कांग्रेसकी सभा, जफनामें

जो निम्नसे-निम्न या हीनसे-हीन मनुष्यको सुलभ न हो । यदि यह प्रस्ताव तर्क-सम्मत है -- और मैं दावेके साथ कहता हूँ कि यह अहिंसाके सिद्धान्तका एक बिलकुल सीधा सहज निष्कर्ष है -- और यदि आप इसे स्वीकार करते हैं और यह पूरे तौरपर तर्क- सम्मत भी है, तो इससे एक यही सहज परिणाम निकलता है कि हमें संसारकी किसी भी वस्तुके बदले अपनी प्राचीन कालकी सरलता, अपनी सादगीको त्यागनेके लिए तैयार नहीं होना चाहिए। अब आप शायद समझ गये होंगे कि आधुनिकताकी होड़का मैं इतना डटकर विरोध क्यों करता हूँ। पाश्चात्य देशोंसे आधुनिकताकी मोहक चकाचौंध ऐसी तड़ित-गतिसे कौंध कर आ रही है कि लगता है जैसे हम उसमें डूब जायेंगे, उसीके रंगमें रंग जायेंगे। मैंने अपने लेखोंमें और अपने भाषणोंमें भी इस बातका हर जगह पूरा ध्यान रखा है कि पाश्चात्य देशोंमें अपनाये जानेवाले आधुनिक तरीकों, उनकी आवश्यकताओं और भौतिक सुख-सुविधाओंकी बहुलताके तौर-तरीकेमें तथा गिरि-शिखरपर दिये गये ईसाके उपदेशकी सारभूत शिक्षाओंमें भेद किया जाये और इन दोनोंको एक ही समझनेकी गलती न की जाये। मैंने इसीलिए अपने भाषणके आरम्भमें ही आपको इसका संकेत दे दिया था कि मैं आगे क्या कहने जा रहा हूँ। आरम्भमें ही मैंने आपसे कहा था कि आखिर ईसा और मुहम्मद भी एशियाई ही थे । अमेरिका और इंग्लैंड तथा संसारके अन्य भागोंमें आज जो भी कुछ हो रहा है, हमें ईसाके उपदेशों और उनके सन्देशको उससे अलग समझना चाहिए और दोनोंमें स्पष्ट भेद करना चाहिए । मैं स्वयं भी दक्षिण आफ्रिकामें अपने हजारों-लाखों ईसाई मित्रोंके साथ रह चुका हूँ और अब तो सम्पर्कका दायरा बढ़ जाने के कारण संसार-भरके ईसाइयोंके साथ रह रहा हूँ, [ पर मैंने अपने आपको उस पाश्चात्य चकाचौंधसे अछूता रखा है, ] तो आप हिन्दू और मुट्ठीभर बौद्ध लोग -- अगर इतने भी बौद्ध यहाँ हैं -- भी अपनी प्राचीन संस्कृतिके प्रति सच्चे बने रहने का संकल्प करें और तथाकथित ईसाइयतके वेशमें आपके पास पहुँचनेवाली इस मोहक चकाचौंधसे कोई सरोकार न रखें। यदि आपमें अडिग आस्था हो, यदि आप अपनी आस्थाको किसी भी तरह मन्द न पड़न देनेके लिए प्रयत्नशील रहें, तो आप देखेंगे कि आपके ईसाई मित्र अपनी पाश्चात्य चकाचौंध लेकर भले ही आपके पास आयें, पर वे उसे त्याग देंगे और आपके सादगीके सिद्धान्तके भक्त बन जायेंगे; क्योंकि इसीसे उस निष्कर्षकी सच्चाई सिद्ध होगी जो मैंने आप सबके सामने रखा है।

यदि आप मेरे सभी तर्कोंको भलीभाँति समझते गये हैं तो आपको मेरा सन्देश, चरखेका अमिट सन्देश, समझने में जरा भी कठिनाई नहीं होगी इसलिए कि मुझे तो चरखेके पीछे ईश्वरका वरदहस्त दिखाई देता है, मुझे तो उसमें एक ऐसे त्राणकत्र्ताकि दर्शन होते हैं जो दीनसे-दीन जनोंकी आवश्यकताओंकी हर समय पूर्ति कर सकता है। इसीलिए मैं केवल चरखेकी बात सोचता हूँ, चरखा ही चलाता हूँ, चरखेके बारेमें ही ईश्वरसे प्रार्थना करता हूँ और इसीके बारेमें भाषण देता घूमता । और यदि आप मुझे दूसरी कोई ऐसी चीज बतला सकें जो हमें संसारके भूखे- नंगोंके निकट पहुँचा दे, हमें एकदम भंगियोंके स्तरपर ले जा सके, तो मैं अपना चरखा वापस ले लूंगा और आपकी बतलाई उस चीज या उस साधनको शिरोधार्यकर