पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३७२

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३४४
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

इन सभी धर्मोंमें किन्हीं दो व्यक्तियोंके सोचनेका तरीका बिलकुल एक जैसा नहीं है। परन्तु यदि सभी धर्मोके अनुयायी... परस्पर एक-दूसरेके धर्मका विचार उन- उन लोगोंके दृष्टिकोणसे विचार करने लगें तो सब लोग जल्दी ही एक-दूसरेसे सहमत हो जायेंगे। मैं जिस भारतका सपना देखता हूँ उसमें किसी एक हो धर्मका विकास होगा, ऐसा मैं नहीं सोचता। मैं उससे यह आशा करता हूँ कि उसमें सभी धार्मिक विश्वासोंको सम्मानकी दृष्टि से देखा जायेगा; उसमें सभी धर्म साथ-साथ रहेंगे और उनमें परस्पर सन्देह या ईर्ष्या पैदा नहीं हो पायेगी, जिसकी कुछ झलक मुझे यहाँ जफनामें भी देखनेको मिली है।

रेवरेंड जे० बिकनेलने प्रश्न किया : "आप भारतमें हिन्दू-मुसलमान एकताके लिए काम करते रहे हैं। क्या दोनोंमें एकता पैदा होनेको कोई सम्भावना है ? "

महात्माजी : हाँ है, बिलकुल निश्चित तौरपर है ।

रेवरेंड बिकनेल : एक गो-पूजक है, दूसरा गो-भक्षक; एक मूर्ति-पूजक है, दूसरा मूर्तिभंजक ?

महात्मा गांधीने कहा कि मैं मानता हूँ कि कुछ सतही फर्क हैं और चूंकि में एक छोटा-मोटा रसोइया भी हूँ, इसलिए मैं जानता हूँ कि गन्दे नमकको थोड़ी-सी गन्दी चीनीके साथ मिलानेपर क्या होता है। उनको एक बर्तन में रखकर आगपर चढ़ा दीजिए और फिर थोड़ा पानी डाल दीजिए। सारी गन्दगी सतहपर आ जायेगी और उसे देखकर कोई भी अनाड़ी रसोइया यही निष्कर्ष निकालेगा कि वह सब गन्दगी ही है और वह बिना सोचे-समझे उसे फेंक देगा। लेकिन में एक सिद्धहस्त रसोइया होने के नाते जानता हूँ कि उस गन्दगीको सतहपरसे आसानीके साथ हटाया जा सकता है और तब शुद्ध चीनी और नमकके कणोंको अलग-अलग किया जा सकता है। हिन्दुओं और मुसलमानोंके बारेमें भी यही बात है। यह सही है कि आज वे कुत्तोंकी तरह आपसमें आपसमें उलझ रहे हैं, लेकिन यह सब एक-दूसरेके करीब आनेके लिए ही है। उनके परस्पर जूझनेका वास्तविक कारण यह नहीं कि एक मूर्ति-पूजक और दूसरा मूर्ति-भंजक है, या एक गो-पूजक और दूसरा गो-भक्षक है। वास्तविक कारण तो पारस्परिक भय है जो दोनोंको सता रहा है और पारस्परिक अविश्वास है जिसके मूलमें सदा भय ही रहता है। आज यही सब हो रहा है और दुर्भाग्यकी बात यह है कि दोनों जातियाँ बहकावेमें आ गई हैं और दोनों ही अपने-अपने धर्मोकी मूलभूतशिक्षाओंको भूल बैठी हैं। स्पष्ट दिख रहा है कि हिन्दू लोग अहिंसा का सिद्धान्त भूल बैठे हैं, हालाँकि वे 'अहिंसा परमो धर्मः' कहते नहीं थकते। मुसलमान शायद यह सोचते हैं कि इस्लाममेंअहिंसाकी तरह ही हिंसाके लिए भी काफी गुंजाइश है। पर मैंने जब-जब अपने मुसलमान मित्रोंके साथ इसके बारेमें जिरह की है, उन्होंने यही कहा है कि इस्लाम हमेशासे अहिंसाके सिद्धान्तका प्रतिपादक रहा है लेकिन