पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/३९९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७१
भेंट : एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिसे

और कहा गया है:

"कपड़े तो आप पहनेंगे हो, पर अगर आप खावी पहनते हैं तो हिन्दुस्तानके गाँवोंके पुनरुद्धार में हाथ बॅटाते हैं ।"

अकेले आश्रमने ही पिछले ढाई वर्षोंमें आसपासके गाँवोंके गरीब आदमियोंमें, १,२४,५३६ रु० बाँटे हैं, और वह कुछ खैरातमें नहीं बल्कि घर बैठे कामके बदलेमें । आश्रम मुफ्त दवाखाना भी चलाता है, जिसमें पिछले ११ महीनोंमें १०,१४५ रोगी आये, और १४८ रोगियोंकी शल्य-चिकित्सा की गई। रोगियोंमें अछूत कहलानेवाले लोग भी थे ।

[ अंग्रेजीसे ]
यंग इंडिया, १-१२-१९२७

२३८. भेंट : एसोसिएटेड प्रेसके प्रतिनिधिसे

मद्रास
१ दिसम्बर, १९२७

गांधीजीने पत्र-प्रतिनिधि द्वारा पूछे गये अनेक प्रश्नोंका उत्तर देने से इनकार कर दिया। उन्होंने कहा :

मैं लंकासे अभी ताजा-ताजा लौटा हूँ और किसी प्रश्नका उत्तर देनेकी स्थितिमें नहीं हूँ ।...

इसके बाद गांधीजीका ध्यान शाही आयोगके[१] बारेमें उनके लंका में दिये गये इस बयानकी [२] ओर दिलाया गया, जिसमें उन्होंने कहा था कि मेरा अन्तःकरण कांग्रेस अध्यक्ष के पास गिरवी रखा है। गांधीजीसे पूछा गया कि क्या वे उस बयानपर अब भी टिके हुए हैं और क्या वेकांग्रेस अध्यक्षके इस विचारसे सहमत हैं कि इस समयकी बड़ी जरूरत यह है कि शाही आयोगकी नियुक्तिके पीछे जो नीति है, उसके विरोध मेंबड़े पैमानेपर सामूहिक आन्दोलन फिरसे आरम्भ करनेके लिए गौहाटीकार्यक्रम में फेरबदल[३] किया जाये। क्या महात्माजी स्वयं किसी ऐसे आन्दोलनका नेतृत्व करेंगे ? गांधीजीने अपना यह उत्तर दोहराया कि पिछले कुछ सप्ताहोंसे में भारतकी घटनाओंके सम्पर्कमें नहीं रहा हूँ । इस प्रश्नका और अच्छी तरह अध्ययन करनेका अवसर मिलने से पहले में इस समय कुछ कहना नहीं चाहता। उन्होंने कहा :

 
  1. १. देखिए परिशिष्ट ८ ।
  2. २. देखिए "भेंट: पत्र-प्रतिनिधियों से ", १३-११-१९२७।
  3. ३. वाइसरायके वक्तव्य के अंशोंके लिए, देखिए परिशिष्ट ७ ।