पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४०४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
३७६
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

प्रार्थना करें। जिन छात्रों तथा अन्य लोगोंको प्रार्थनामें विश्वास है वे आँख बन्द करके प्रार्थना करें। प्रार्थनाके बाद मैं उसकी उपयोगिताको समझानेकी कोशिश करूंगा । जो लोग प्रार्थना करनेके लिए अनिच्छुक हैं, उनसे मेरा अनुरोध है कि वे शान्तिपूर्वक बैठे रहें ।[१]

जिस प्रकार शरीरके लिए भोजन आवश्यक है, उसी प्रकार आत्माके लिए प्रार्थना आवश्यक है। कोई मनुष्य कई दिनोंतक बिना भोजन किये रह सकता है -- जैसा कि मेकस्विनीने ७० से अधिक दिनतक किया था -- लेकिन ईश्वरमें विश्वास रखते हुए मनुष्य एक क्षण भी बिना प्रार्थना किये नहीं रह सकता और न उसे रहना ही चाहिए। आप कहेंगे कि हम ऐसे बहुत से लोग देखते हैं जो प्रार्थना नहीं करते । मैं भी साहसपूर्वक कहता हूँ कि वे प्रार्थना नहीं करते, लेकिन यह तो मानवकी पाशविक वृत्ति है और जो उसके लिए मृत्युसे भी ज्यादा बुरी है। मुझे इसमें रंचमात्र भी सन्देह नहीं है कि आज हमारा वातावरण जिस लड़ाई-झगड़ेसे भरा हुआ है, वह हमारी सच्ची प्रार्थनाकी भावनाके अभावके कारण है। मैं जानता हूँ कि आप मेरे इस कथनसे असहमत होंगे और कहेंगे कि लाखों हिन्दू, मुसलमान और ईसाई प्रार्थना करते हैं। मैंने सोचा था कि आप इस प्रकारकी शंका उठायेंगे, इसलिए मैंने "सच्ची प्रार्थना " शब्दोंका प्रयोग किया है । तथ्य यह है कि हम मात्र होंठ हिलाकर प्रार्थना करते रहे हैं, और यह मात्र होठोंसे प्रार्थना करनेके दम्भसे बचनेके लिए ही है कि हम लोग आश्रममें 'भगवद्गीता' के द्वितीय अध्यायके अन्तिम श्लोक हर संध्या प्रार्थनामें दोहराते हैं। यदि 'आत्माकी समानता 'का, जिसका वर्णन उन श्लोकोंमें है, प्रतिदिन ध्यान करें, तो यह निश्चित है कि हमारा हृदय ईश्वरकी ओर उन्मुख होगा। यदि आप छात्रगण अपनी शिक्षाको शुद्ध चरित्र और शुद्ध हृदयकी सच्ची नींवपर आधारित करना चाहते हों तो इसके लिए प्रतिदिन नियमपूर्वक सच्चे मनसे प्रार्थना करनेसे अधिक सहायक और कोई चीज नहीं हो सकती ।

[ अंग्रेजीसे ]

समाज, १०-१२-१९२७

यंग इंडिया, १५-१२-१९२७
 
  1. १. प्रथम दो अनुच्छेद उड़िया पत्र समाज से लिये गये हैं। इसके बादकी सामग्री १५-१२-१९२७के यंग इंडिया में प्रकाशित महादेव देसाईके " साप्ताहिक पत्र " से ली गई है। महादेव देसाईने लिखा है : “छात्रोंकी सभा शाम सात बजे रखी गई थी। यथापि हम सभामें सात बजे नहीं पहुँचे और अपनी प्रार्थना इमें मार्गेमें ही करनी पड़ी, फिर भी गांधीजीने सभामें सामूहिक प्रार्थना करनेका निश्चय किया। प्रार्थना हुई, जिसमें छात्रोंने पूरी शान्ति रखी...।"