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पत्र : हरजीवन कोटकको

महीने रहोगे तो तुम भी मेरे साथ काठियावाड़ चलकर उस विचित्र प्रदेशको देख सकते हो ।

चरखा नियमित रूपसे अवश्य कातो, और एक बार ठीक चलाना आ जानेपर तुम उसे छोड़ना नहीं चाहोगे। वह एक विश्वसनीय साथी होगा जो तुम्हारे चाहने- पर ही तुमसे बोलेगा। लेकिन चरखा चलानेमें तुम्हें पूरा आनन्द तभी मिलेगा जब तुम चरखेको, और चरखेके जरिये अपने-आपको हमारे देशके तुच्छसे-तुच्छ लोगोंके साथ जोड़ लोगे । और यदि निर्धनतम लोगोंके साथ अपना सम्बन्ध मानने में कोई लज्जा नहीं है तो तकलीको जारी रखनेमें कोई शर्म की बात क्यों होगी । मैं समझता हूँ कि तुम्हें यह मालूम है कि अल्मोड़ामें और भारतके अनेक अन्य भागोंमें गड़रिये अपनी तकली साथ रखते हैं और जहाँ कहीं भी जाते हैं, वहीं अपना ऊन कातते रहते हैं ।

तुम्हारा,

श्रीयुत श्रीप्रकाश
बनारस
अंग्रेजी (एस० एन० १२६४६) की माइक्रोफिल्मसे ।

२६१. पत्र : हरजीवन कोटकको

बोलगढ़, उड़ीसा
११ दिसम्बर, १९२७

बुरे विचारोंके कारण जब मन मलिन हो उठे तो ऐसे विचारोंको मनमें न आने देनेकी चेष्टा करनेकी बजाय हमें किसी अन्य कार्यमें मन लगा देना चाहिए; अर्थात् उसे उपयुक्त कामसे सम्बन्धित विचारोंमें उलझा देना चाहिए। या फिर मनको रामनाममें लगाना, कुछ पढ़नेमें लगाना, ऐसे किसी शारीरिक श्रममें लगाना चाहिए जिसमें मनको ओतप्रोत करना होता हो। इधर-उधर दृष्टि नहीं डालनी चाहिए। यदि किसी स्त्रीपर दृष्टि पड़े तो उधरसे दृष्टि हटा लेनी चाहिए। किसी स्त्री अथवा पुरुषकी ओर आँख उठाकर देखना तो शायद ही आवश्यक होता है। इसीलिए ब्रह्मचारी तथा अन्य लोगोंके लिए यह विधान है कि वे चलते हुए अपनी दृष्टि नीचेकी ओर रखें। और यदि हम बैठे हों तो अपनी दृष्टि स्थिर रखें । ये सब बाह्य उपाय हैं, किन्तु हैं अमूल्य । जब तुम्हें उपवासकी आवश्यकता जान पड़े तब उपवास कर सकते हो ।

तुम्हें सातवलेकरजीके पास जानेकी आवश्यकता नहीं है। वे तुम्हें आसन जरूर सिखा सकते हैं। आसन सीख लेना उचित ही है । यदि तुम सिर्फ आसन सीखने के लिए उनके पास जाना चाहो तो अवश्य चले जाना। मैं उन्हें अच्छी तरह जानता हूँ, वे सज्जन पुरुष हैं।