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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

कि निर्जीव अंडे बहो[ त ] पैदा होते हैं। इसका शास्त्र है और प्रायः निर्जीव अंडे ही लोक खाते हैं। परंतु इस बातसे अंडे खाद्य पदार्थ नहि बन सकते हैं ।

अहिंसा व्यापक धर्म है । शरीरको प्राणसे अलग करना हि हिंसा नहिं है। ब्रह्मचर्य- का त्याग भी मेरी दृष्टिमें हिंसा है। प्रसिद्ध बात है की मांसाहार अंडे और दूध भी ब्रह्मचारीके लीये त्याज्य वस्तु है। केवल वनस्पतिके आहारसे ब्रह्मचर्य सुलभ हो जाता है ।

अंतमें, यद्यपि आहारका विषय धार्मिक मनुष्यके लीये अत्यावश्यक है तथापि न इसीमें धर्म अथवा अहिंसाकी समाप्ति है न यहि सर्वोपरि वस्तु है। धर्म और अहिंसा- का पालन हृदयकी बात है। हृदयको विशुद्ध बनानेमें जिसको मांसाहारके त्यागकी आवश्यकता प्रतीत न हो वह त्याग न करे ।

आपका,
मोहनदास

जी० एन० ६२७९ की फोटो-नकलसे ।

२६४. तार : साकरचन्दको

बालासोर
१४ दिसम्बर, १९२७

साकरचन्द सेठ

केनिलवर्थ कालेज

पंचगनी

आशा है आप बेहतर हैं। लिख रहा हूँ। ईश्वर आपको प्रसन्न रखे ।

गांधी

अंग्रेजी (जी० एन० ७१५९) की फोटो-नकलसे ।