पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४५३

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२९४. पत्र : सुभद्रा तुलजापुरकरको

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२३ दिसम्बर, १९२७

मेरी तरुण मित्र,

मैं तुम्हारे पत्रका[१] इससे पहले उत्तर नहीं दे सका । तुम 'गीता' का पूरा पाठ बिना एक भी गलती किये सुना सकती हो, और तुम्हें 'गीता' का सस्वर पाठ करनेके लिए पुरस्कार मिला है, इसके लिए बधाई । 'गीता' का पाठ करनेके अलावा, उसका अध्ययन करनेका सर्वोत्तम तरीका यह है कि उसका एक-एक श्लोक लिया जाये, उसके अर्थको पूरी तरह समझा जाये, और अपने जीवन-व्यवहारमें उनका पालन किया जाये। जब कभी मैं बम्बई आऊँगा, तब शायद तुम आकर मुझे कुछ अध्यायोंका पाठ सुनाओगी ।

हृदयसे तुम्हारा,

कुमारी सुभद्रा तुलजापुरकर

एन० पी० पाठारेका घर
पुर्तगाली चर्चके पास

दादर, बम्बई
अंग्रेजी (एस० एन० १२६३५ ए० ) की फोटो-नकलसे ।

२९५. पत्र : जेबुन्निसाको

[२]

स्थायी पता : आश्रम, साबरमती
२३ दिसम्बर, १९२७

प्रिय मित्र,

मुझे दुख है कि मैं आपके पत्रका उत्तर इससे पहले नहीं दे सका। आश्रमसे मुझे सूचना मिली है कि आपका नाटक वहाँ प्राप्त किया जा चुका है। लेकिन जैसा कि आपने देखा होगा, मैं बराबर भ्रमण कर रहा हूँ । हालाँकि मैं जनवरीमें आश्रम पहुँच जानेकी आशा करता हूँ, लेकिन मुझे कोई अन्दाज नहीं है कि मैं आपकी पाण्डुलिपि

  1. १. ६-१०-१९२७ का; पत्रलेखिका १५ वर्षको लड़की थी।
  2. २. एक मुसलमान महिला जो अपना उर्दू नाटक गांधीजीको समर्पित करना चाहती थी।