है और वह तमिलनाडु तथा आन्ध्र देशमें काफी बड़ी संख्या में लोगों को हिन्दी की शिक्षा देती रही है। इन वो प्रान्तोंमें बहुत-से लोगों ने हिन्दी सीखी है और परीक्षाएँ पास की हैं। हिन्दी प्रदर्शनीका उद्घाटन पंडित मदनमोहन मालवीयको करना था, लेकिन चूंकि वह नहीं पहुँच सके हैं इसलिए इसका उद्घाटन मुझसे करने को कहा गया है। मैं आपसे कहूँगा कि आप हिन्दी सीखें। मैं आपको बता दूं कि इसे आसानी से सीखा जा सकता है और सीख लेनेपर आप देखेंगे कि यह एक सुन्दर भाषा है।
इन शब्दोंके साथ महात्माजीने खादी और हिन्दी प्रदर्शनियों का विधिवत् द्घाटन किया।
हिन्दू, २४-१२-१९२७
३०५. टिप्पणी : एक लेखपर
हमें इस कलंकसे कब छुटकारा मिलेगा ? क्या पिछली प्रलयसे[२] भी हिन्दुओंकी आँखें नहीं खुलीं ? ढेढ़ों और भंगियोंको ओछी जातिका किसने बनाया ? ब्राह्मण और बनिये ऊँची जातिके कब हो गये ?
नवजीवन, २५-१२-१९२७
३०६. इन्द्रराज चरखा
कश्मीरमें चरखेका क्या स्थान है, इस बारेमें श्री हरजीवनदास कोटकने १-१२-२७ की खादी पत्रिका' में एक लेख लिखा है। मैं प्रत्येक खादीप्रेमीको यह लेख पढ़ जानेकी सलाह देता हूँ । उस लेखका मूल्य भाई हरजीवनदासके अनुभवमें निहित हैं। उन्होंने स्वयं कश्मीरमें रहकर निरीक्षण किया है और उसके बाद यह लेख लिखा है। इसमें तीन बातें स्पष्ट होती हैं।
- १. चरखेका महत्त्व,
- २. कश्मीरमें आज भी इस प्रवृत्तिके लिए कितना स्थान है; और
- ३. कश्मीरमें इस अमूल्य हस्तकलाका ह्रास ।