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स्मृतिमें

मेरे पास अपनी बातोंको विस्तारसे कहने के लिए समय नहीं है, परन्तु बुद्धिमान के लिए इशारा ही काफी होना चाहिए ।

आशा है, कमलाका स्वास्थ्य उतना ही अच्छा होगा जितना यूरोपमें था।

तुम्हारा,
बापू

[ अंग्रेजीसे ]
ए बंच ऑफ ओल्ड लेटर्स

३२४. स्मृतिमें

हकीम साहब अजमल खाँके स्वर्गवाससे देशका एक सबसे सच्चा सेवक उठ गया । हकीम साहबका व्यक्तित्व बहुमुखी था । वे महज एक ऐसे कामिल हकीम ही नहीं थे, जो गरीबों और धनिकों, सबका समान भावसे इलाज करता है बल्कि इस देशभक्तकी रसाई राज-दरबारोंमें थी। हालांकि उनका वक्त राजों-महाराजोंके साथ बीतता था, मगर थे वे पक्के प्रजावादी । वे बहुत बड़े मुसलमान थे, और उतने ही बड़े हिन्दुस्तानी भी । हिन्दू और मुसलमान दोनों ही से वे एक-सा प्रेम करते थे । बदलेमें हिन्दू और मुसलमान दोनों ही उनसे एक-सी मुहब्बत रखते थे, उनकी इज्जत करते थे । हिन्दू-मुस्लिम एकतापर वे जान देते थे। हमारे झगड़ोंके कारण वे अपने अन्तिम दिनोंमें दुखी हो गये थे । मगर अपने देश और देशबन्धुओंमें उनका विश्वास कभी नष्ट नहीं हुआ। उनका खयाल था कि आखिर दोनों सम्प्रदाय एक दिन गले मिलकर रहेंगे। यह अटल विश्वास लेकर उन्होंने एकताके लिए प्रयत्न करना कभी नहीं छोड़ा । यद्यपि उन्हें सोचने में कुछ समय लगा था, मगर आखिर वे असहयोग आन्दोलन में कूद ही पड़े और अपनी सबसे प्रिय और सबसे बड़ी कृति तिब्बिया कालेजको खतरे में डालते हुए भी वे नहीं झिझके । इस कालेजसे उनका ऐसा प्रबल अनुराग था जिसका अन्दाजा सिर्फ वे ही लगा सकते हैं जो हकीमजीको भली-भाँति जानते थे। हकीमजीके स्वर्गवाससे मैंने न सिर्फ एक बुद्धिमान और दृढ़ साथी ही खोया है बल्कि एक ऐसा मित्र भी खोया है जिसपर मैं आड़े वक्त में भरोसा कर सकता था । हिन्दू-मुस्लिम एकताके बारेमें वे हमेशा ही मेरे रहबर थे। अपनी निर्णय-शक्ति, संयमित स्वभाव और मनुष्य-प्रकृतिके ज्ञानके आधारपर वे बहुत करके सही फैसला ही किया करते थे। ऐसा आदमी कभी मरता नहीं है। यद्यपि उनका शरीर अब नहीं रहा, मगर उनकी भावना तो हमारे साथ बराबर रहेगी, और वह अब भी हमें अपना कर्त्तव्य पूरा करनेकी प्रेरणा दे रही है। जबतक हम सच्ची हिन्दू-मुस्लिम एकता पैदा नहीं कर लेते, उनकी याद बनाये रखनेके लिए हमारा बनाया कोई स्मारक पूर्ण नहीं कहा जा सकता। परमात्मा करे कि जो काम हम उनके जीते-जी नहीं कर सके, वह उनके निधन से करना सीख लें ।

मगर हकीमजी कोरे स्वप्न द्रष्टा नहीं थे। उन्हें विश्वास था कि उनका स्वप्न एक दिन पूरा होगा ही। जिस तरह तिब्बिया कालेजके जरिये उनका देशी चिकित्साका ३५-२९