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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

अविश्वासकी दृष्टिसे देखते हैं, तबतक सर्वाङ्गीण प्रस्तावोंके बावजूद सच्ची एकता नहीं हो सकती। आइए, हम आशा करें कि कांग्रेस अधिवेशनमें जो विश्वास पैदा हुआ है, वह कायम रहेगा और सर्वत्र छा जायेगा। मालवीयजीके भाषण से खुश होकर मौलाना मुहम्मद अलीने कहा कि अब मुसलमान लॉर्ड विन्टरटनसे अल्पसंख्यकों की हिफाजतकी प्रार्थना नहीं करना चाहते क्योंकि यह काम मालवीयजी ज्यादा अच्छी तरह कर सकते हैं। अगर कोई एक हिन्दू अकेला ही मुसलमानोंको हिन्दुओंकी ओरसे ऐसी रक्षाका वचन दे सकता है तो वह केवल मालवीयजी ही हैं। मालवीयजी हिफाजत कर सकें या न कर सकें, मगर मैं चाहता हूँ कि मौलाना साहब और दूसरे मुसलमान और सभी अल्प संख्यक लोग यह खयाल दिलसे हमेशा के लिए निकाल दें कि कोई तीसरा हमारी रक्षा करेगा और न उससे उसकी उम्मीद रखनी चाहिए। अगर बहुसंख्यक लोग स्वयं ही अपनी इच्छासे ऐसी हिफाजतकी गारंटी न दें तो तीसरे किसीकी मदद लेनेकी बनिस्बत कहीं अच्छा होगा कि उनके अनिच्छुक हाथोंसे उसे जबर्दस्ती छीन लिया जाये। तीसरे किसीको हस्तक्षेपके लिए बुलाया जायेगा तो वह दोनोंको कमजोर और जलील करेगा और राष्ट्रको गुलाम बनाये रखेगा। इसीलिए मैं तो कांग्रेस अधिवेशनका सबसे बड़ा योगदान इस हृदय परिवर्तनको ही मानता हूँ।

जहाँतक अधिकांश हिन्दुओंका ताल्लुक है वे तो सिर्फ बाजे और गायवाले प्रस्तावमें दिलचस्पी रखते हैं। इस प्रस्तावका मूल रूप तो बहुत ही बुरा था। और अन्तमें विषय-निर्धारिणी समितिसे स्वीकृत होकर वह जिस रूप में निकला, उसके बारेमें सिर्फ इतना ही कहा जा सकता है कि वह निर्दोष है और हमारे राष्ट्रीय विकासकी वर्तमान स्थितिमें उसका सबसे अच्छा वही रूप स्वीकृत हो सकता था। पर कमसे कम मैं तो उसपर खुशियाँ नहीं मना सकता। मैं तो उसे सिर्फ एक कामचलाऊ प्रस्ताव ही मान सकता हूँ। फिर भी इस प्रस्तावमें काफी सम्भावनाएँ मौजूद हैं। कांग्रेसकी अपील हिन्दुओं और मुसलमानोंके दिलोंमें घर कर सके और दोनों सम्प्रदाय एक दूसरेके दावोंके साथ जुड़ी हुई भावनाओंकी परस्पर कद्र करने लगें तो शान्ति- स्थापनाकी आशा मूर्त होते दिखने लगती है और स्वराज्यका लक्ष्य प्राप्त करना बिलकुल सरल लगने लगता है। लॉर्ड बर्कनहेडने बड़े दम्भसे ब्रिटिश साम्राज्यकी ताकतका डंका पीटकर समूचे राष्ट्रको आतंकित करनेकी जो कोशिश की है उसका सबसे अच्छा और गरिमापूर्ण उत्तर यही होगा कि हम आपसकी सिर-फुटौवलकी अपनी बेवकूफीको समझ लें और इस नई समझ के अनुरूप मिल-जुलकर कोई कदम उठायें।[१]

इसलिए कांग्रेस द्वारा की गई अपीलका अर्थ समझनेका प्रयास फलप्रद होगा। मैं जानता हूँ कि गौ के बारेमें हिन्दुओंकी भावनाओंको तुष्ट करनेके लिए क्या किया जाना चाहिए। जबतक मुसलमान स्वेच्छापूर्वक खान-पान और कुर्बानी, दोनों ही के लिए गो-वध बिलकुल ही बन्द नहीं कर देते, तबतक यह होनेका नहीं। अगर कोई अत्याचारी शासक तलवारके बलपर गो-वध बन्द करा दे तो उससे हिन्दू-धर्म सन्तुष्ट

  1. देखिए खण्ड २७।