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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


मगर मेरी बातका गलत मतलब न लगाया जाय। अगर कांग्रेस चाहे तो ब्रिटिश मालका बहिष्कार करनेका उसे पूरा हक है। मगर भारतवर्ष में सबसे अधिक प्रातिनिधिक संस्था होनेके कारण उसे वैसी धमकियाँ देकर अपना मजाक करवानेका कोई अधिकार नहीं, जिन्हें वह पूरा नहीं कर सकती। कांग्रेस द्वारा स्वीकार किये हुए कई गैर-जिम्मेदाराना प्रस्तावों में से मैंने दो बतौर नमूनेके चुन लिये हैं।

कांग्रेसका विधान इस खयालसे बनाया गया था कि जिससे वह सारे भारतवर्ष में सबसे अधिक प्रातिनिधिक तथा प्रामाणिक संस्था बने और करोड़ों आम लोग उसके आदेश स्वेच्छापूर्वक मानें जिससे वह अपने आप ही, बल्कि महसूस भी न हो ऐसी गतिसे उन झूठी, नकली और हमें गुलाम बनानेवाली परिषदों, विधानसभाओं और दूसरी विदेशी संस्थाओंकी जगह ले ले जो प्रातिनिधिक होनेका स्वाँग धारण किये हुए हैं। मगर तबतक तो कांग्रेस वैसी अपराजेय शक्ति नहीं बन सकती, जो वह पहले थी या जिसके होनेकी हम इससे आशा रखते हैं, जबतक इसके प्रस्ताव महज कागजी लिखापढ़ी बने रहें और जनता उनसे तनिक भी अनुप्राणित न हो, या उनका देशकी आवश्यकताओं और आकांक्षाओंसे कोई सम्बन्ध न हो, और उसके सदस्य अनुशासनका पालन नहीं करें तथा शिष्टता और साधारण ईमानदारीको भी उठाकर ताक में रख दें। अगर अ॰ भा॰ राष्ट्रीय कांग्रेसकी महासमिति के सदस्योंको इसका सिर्फ ज्ञान हो जाये, वे यह मानने लगे कि वे राष्ट्र के सेवक हैं तो फिर सेवाके ऐसे मौके और अधिकार उन्हें प्राप्त ही हैं जो संसारके किसी देशकी राष्ट्रीय संसदके सदस्योंको प्राप्त हैं। मगर फिलहाल तो हम स्कूली लड़कोंकी वाद-विवाद सभाओंकी ही बराबरी कर रहे हैं।

कार्य समिति तो राष्ट्रीय मन्त्रिमण्डल है। उसे कांग्रेस और महासमिति के प्रस्तावोंके अनुसार कार्य कराना है। इसलिए कांग्रेसके ध्येय की प्राप्ति के लिए अपेक्षित प्रस्तावों को महासमितिमें लानेका भार उसीपर है। अ॰ भा॰ राष्ट्रीय कांग्रेसमें अगर कोई दूसरा सदस्य अचानक कोई प्रस्ताव कर बैठे तो उसकी बड़ी सावधानी से परीक्षा की जानी चाहिए, और अगर कार्य समिति उसका विरोध करे तो उस प्रस्ताव के स्वीकृत होने की सम्भावना बहुत ही कम होनी चाहिए। चाहे कार्य समितिका हो, या किसी दूसरे सदस्यका, मगर हरएक प्रस्तावके साथ कामकी योजना तो होनी ही चाहिए। इसलिए अगर दूसरा कोई सदस्य अपनी जाती हैसियतसे कोई प्रस्ताव करे तो उसे इसके लिए तैयार रहना चाहिए कि प्रस्ताव स्वीकृत होनेपर वह बतला सके कि कामकी योजना क्या होगी। अगर कोई यह प्रस्ताव करे कि हिन्दुस्तानके गाँव-गाँव में बड़ी उम्रवालोंके लिए निःशुल्क रात्रि-पाठशालाएँ खोली जायें तो कांग्रेसके लिए यह प्रस्ताव सभी तरहसे पसन्द करने लायक है। किन्तु अगर प्रस्तावकके पास कामकी कोई निश्चित और व्यावहारिक योजना न हो तो कांग्रेसके लिए उस प्रस्तावको अस्वीकार करना ही उचित होगा, उसे अस्वीकार करना ही पड़ेगा। इसलिए अगर कांग्रेसकी प्रतिष्ठा और उपयोगिता बनाये रखनी है तो अ॰ भा॰ राष्ट्रीय कांग्रेसके सदस्योंको अपना दृष्टिकोण बदलना पड़ेगा और अपनी बहुत बड़ी जिम्मेवारी समझनी पड़ेगी।