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३२७. पत्र : घनश्यामदास बिड़लाको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
५ जनवरी, १९२८

भाई घनश्यामदासजी,

मैंने एक पत्र जमनालालजीके मार्फत भेजा था मीला होगा। एक तार भी भेजा था कि स्वास्थ ठीक न हो जाय तब तक एसेंबली में हरगीज न जायँ। पू॰ मालवीजीसे कहना था परंतु इतनी बातोंमें हम रुक गये थे मुझे आपका स्मरण न रहा। अब इस बारेमें उनको लिखनेकी आवश्यकता नहीं समझता हुँ? रुपैये जमना लालजीके यहां ही भेजें होंगे। मैंने अब तक सुना नहिं है।

पू॰ मालवीजीके व्याख्यानका जादुई असर हुआ और वे इस बारेमें खूब प्रयत्न करनेका कहते थे। देखें क्या होता है।

मार्चकी आखर तक मैं आश्रम में हि हुंगा। १७ तारीखको पाँच रोजके लीये काठीयावाड जाना होगा।[१]

आपका,
मोहनदास

सी॰ डब्ल्यू॰ ६१५१ से।
सौजन्य : घनश्यामदास बिड़ला

३२८. पत्र : मगनलाल गांधीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
शुक्रवार [६ जनवरी, १९२८][२]

चि॰ मगनलाल,

तुम्हारे पत्रका पूरा उत्तर फिलहाल नहीं दिया जा सकेगा। अधिक मिलनेपर।

ऊन और रेशमके कीड़ेके कोयोंका उद्योग अच्छा ही है। इस कामको हम एक खास हदतक ही हाथमें ले सकते हैं। मुझसे इस बारेमें विस्तारसे चर्चा करना।

कुसुमको मेरे आशीर्वाद देनेकी तो बात ही नहीं उठती क्योंकि मैं उसके विवाहमें नहीं जा सकूँगा। मुझे तो ऐसा लगता है कि जातिके प्रतिबन्धोंको तोड़ देनेपर

  1. काठियावाड़ राजनीतिक परिषदके लिए।
  2. मगनलाल गांधीको यह पत्र ७ जनवरी, १९२८ को मिला था।