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३३८. पत्र : अब्बास तैयबजीको

साबरमती
१० जनवरी, १९२८

प्रिय भुर्र-र-र,

हाँ, हकीम साहबकी मृत्यु गम्भीर राष्ट्रीय क्षति है। हमें आशा करनी चाहिए कि राष्ट्र इससे लाभ उठायेगा।

बुधवार या बृहस्पतिवारको ३ से ५ बजे के बीच मेरे लिए बिलकुल ठीक रहेगा।

सप्रेम,

भुर्र-र-र

,अंग्रेजी (एस॰ एन॰ ९५६१) की फोटो-नकलसे।

३३९. पत्र : नाजुकलाल चोकसीको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
सोमवार [१० जनवरी, १९२८][१]

भाईश्री ५ नाजुकलाल,

तुमने मिट्टीका उपचार आरम्भ करके ठीक किया। मिट्टीको एक बार भिगोनेके बाद फिर दुबारा भिगोनेकी आवश्यकता नहीं है। यदि वह सूख जाये और फिर जरूरत पड़े तो मिट्टीकी दूसरी रोटी जैसी बना लेनी चाहिए। यदि लगभग १ इंच मोटी रोटी बनाई जाये तो वह जल्दी नहीं सूखती। रातके समय पेडूपर रखी गई मिट्टी तो रात-भर गीली रहती है। दोपहरको माथेपर रखी हुई मिट्टीका सूखना सम्भव है। दिनमें पेडूपर मिट्टी नहीं रखनी चाहिए क्योंकि उस समय पाचन क्रिया चलती रहती है। मेरा यह अनुभव 'सुगन्ध' अर्थात् साफ लाल मिट्टीके बारेमें ही है किन्तु यदि काली मिट्टीका ही प्रयोग करना पड़े तो वह अच्छी साफ मिट्टी होनी चाहिये।

रक्तचापके बारेमें दो बातोंकी सावधानी बरतनी चाहिए। अपनी सामर्थ्यसे अधिक शारीरिक या मानसिक परिश्रम नहीं करना चाहिए, और दस्त तो साफ होना ही चाहिए। यदि प्रतिदिन दस्त न हो तो एनीमा या हलका विरेचन लेना चाहिए, कभी कांखना नहीं चाहिए। बहुत हलकी खुराक लेनी चाहिए। सिर्फ रक्तचापसे घबराने की जरूरत नहीं। किन्तु तुम्हें लकवा हो चुका है इसलिए सावधान रहनेकी जरूरत तो है ही। इसके

  1. मूलके आधारपर; १० जनवरीको मंगलवार था।