पृष्ठ:सम्पूर्ण गाँधी वांग्मय Sampurna Gandhi, vol. 35.pdf/४९६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
४६८
सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय


अगर आपको अपने नेक कामको सुदृढ़ आधार प्रदान करना है तो आपको वहाँ अपने ठहरनेकी अवधि बढ़ानी होगी। कृपया ऐसा ही करें।

सप्रेम,

मो॰ क॰ गांधी

[अंग्रेजीसे]
लेटर्स ऑफ श्रीनिवास शास्त्री

३४१. पत्र : जवाहरलाल नेहरूको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
११ जनवरी, १९२८

प्रिय जवाहरलाल,
तुम्हारा पत्र मिला।
मुझे आशा है कि चाँद[१] अब खतरे से बाहर है।

मेरा मुद्दा[२] यह नहीं है कि तुमने अपने प्रस्तावोंपर, खास तौरपर स्वतन्त्रता प्रस्तावपर पूरी तरह विचार नहीं किया था। मेरा मुद्दा यह है कि तुमने या अन्य किसीने सारी स्थितिपर विचार नहीं किया था और न उसके सन्दर्भ में प्रस्तावोंके अर्थ और औचित्यपर ही विचार किया था। अच्छेसे अच्छे प्रस्ताव भी अप्रासंगिक या बेतुके हो सकते हैं। लेकिन कांग्रेसके बारेमें तुम्हें मेरे लेखोंको ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। स्वतंत्रता के बारेमें विशेष लेख कल प्रकाशित हो जायेगा।

एकता सम्बन्धी प्रस्तावपर काफी मेहनत करनेकी जरूरत है।

तुम जब भी यहाँ आ सको, अवश्य आओ, और जब आओ तो अपना काम साथ लेते आओ, और फुर्सतसे कुछ दिन रहो।

यह पत्र जल्दी में बेसिलसिले लिखा गया है, लेकिन इससे ज्यादा विस्तारसे इस समय नहीं लिख सकता।

तुम्हारा,
बापू

[अंग्रेजीसे]
गांधी-नेहरू पेपर्स, १९२८।
सौजन्य : नेहरू स्मारक संग्रहालय और पुस्तकालय
  1. विजयलक्ष्मी पंडितकी पुत्री चन्द्रलेखा।
  2. देखिए "पत्र : जवाहरलाल नेहरूको", ४-१-१९२८।