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सम्पूर्ण गांधी वाङ्मय

धैर्यपूर्वक काम करते रहेंगे तो यहाँसे भी महान लोग निकलेंगे। और उन्होंने इसका उपाय बताया—आत्म-विश्वास। आत्मविश्वास ईश्वरमें विश्वास और धैर्यसे उत्पन्न होता है। कोई भी उत्तम वस्तु एकाएक नहीं बन जाती। विशाल, सुदृढ़ वृक्षका बीज कुछ कालतक धरतीमें ही रहता है किन्तु माली जानता है कि यथासमय वह वृक्ष बन जायेगा। कुछ समयतक धरतीपर घास रहेगी; और उसे ऊगते रहने दिया जायेगा। माली निराश नहीं होता क्योंकि वह इस विषयमें जानता है। हमसे एन्ड्र्यूज ऐसे किसी ज्ञानकी आशा नहीं रखते; किन्तु श्रद्धाकी आशा रखते हैं। श्रद्धाके सम्बन्धमें 'बाइबिल' की व्याख्या उन्होंने आपके सामने रखी—जो वस्तु दिखाई नहीं देती श्रद्धा उसीका प्रमाण है। यदि आपमें वैसी श्रद्धा हो तो विद्यापीठ कभी बन्द नहीं होगा। जितने वर्ष पेम्ब्रोकको विकसित होनेमें लगे, इस विद्यापीठको उतने नहीं लगे। आप कहेंगे कि क्या १५ बाल-विद्यालयोंका बन्द हो जाना ही प्रगति हुई। यदि और भी विद्यालय बन्द हो जायें, किन्तु आपमें श्रद्धा हो तो आप निराश न होंगे। बाल-विद्यालयोंके बन्द होनेका कारण यह है कि हम अपने सिद्धान्तपर अटल रहे, हम अपनी शर्तपर डटे रहे और कहा : "कात सको तो रहो, नहीं तो जाओ। एक दिन ऐसा भी आ सकता है कि यहाँ कोई न रहे, सिर्फ कुलपति ही बैठा हो—वही शिक्षक हो और वही शिष्य भी। उसके सामने उसका चरखा पड़ा हो तो कोई न कोई तो आयेगा जायेगा। यदि कोई भी न आये तो अन्दर तो आयेंगे और यदि उसमें श्रद्धा होगी तो वह वैदर्भीकी भाँति उनसे बातें करेगा और इसीसे उसे आश्वासन मिलेगा। मेरी श्रद्धाका प्रमाण क्या है? उसका प्रमाण यही है कि वह है। आपसे यदि कोई पूछे तो उससे कहें कि वह जो चरखा चरखा चिल्लाता रहता है, उसीके पास जाओ। यदि आपमें इतनी श्रद्धा हो तो एन्ड्र्यूज कहते हैं कि आप एक नहीं बल्कि एक हजार पेम्ब्रोक खड़े कर सकते हैं। कहाँ इंग्लैंड और कहाँ भारत; भारतमें कितने ही इंग्लैंड समा जायें। किन्तु क्या हममें उतना साहस है? उतना धीरज है? हम अपने सिद्धान्तोंपर डटे रहें और विश्वास रखें। हमें उस दगाबाज व्यापारीकी भाँति व्यापार नहीं करना है जो ग्राहक देखकर पुड़िया बाँधता है और दाम घटाता बढ़ाता रहता है।" यदि नियमोंमें इतनी ढिलाई की जाये तो विद्यार्थी आयेंगे, अतः इतनी ढील दे दी जाये, "इस प्रकारके व्यापारसे न तो जनताको और न विद्यार्थियोंको ही कुछ मिलेगा। यदि अध्यापकों में श्रद्धा होगी तो वे एक ही बात कहेंगे और विद्यार्थी भी एक ही बात कहेंगे। वे कहेंगे कि यदि मैं एक ही हूँ तो भी क्या होता है? अध्यापक मुझपर अपना सर्वस्व निछावर कर देंगे। ईश्वर भी एक ही है किन्तु उसकी कृतियाँ अनेक हैं। इस प्रकार यदि कोई विद्यार्थी अकेला होते हुए भी निर्भय होकर विद्यालयमें बैठ जायेगा तो इससे १०० विद्यार्थी तैयार होंगे। यही एन्ड्र्यूजके भाषणका सार है और यही उनकी वीणाका सुर है।

आप यह मानें कि यही भाषण मेरा भी है। आप अपने मनमें विद्यालयके बारेमें अभिमानकी भावना रखें। विद्यापीठको सँभालें और अपने जीवनको समुज्ज्वल