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३६३. पत्र : रतिलालको

सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
१८ जनवरी १९२८

भाईश्री ५ रतिलाल,

मैंने तुम्हें तार तो दिया है। मुझे आज चि॰ देवदासका पत्र मिला है जिसमें उसने लिखा है कि तुम्हें बहुत दुःख हुआ है। दुःख तो होता है किन्तु तुम्हें धीरज रखना ही चाहिए। शकुभाईके बच्चों आदिके बारेमें मैं कुछ नहीं जानता था। किन्तु देखता हूँ वह काफी बड़ा परिवार छोड़ गया है। उन्हें धीरज बँधानेवाले तो एक तुम्हीं हो। जन्म-मरण तो साथ-साथ लगे हुए हैं अतः उसके लिए हर्ष-शोक क्या करना। हमें तो यही शोभा देता है कि अपने कर्त्तव्यका पालन करते हुए जब हमारा काल आये तो हँसते हुए विदा ले लें। शान्त रहना।

मोहनदासके आशीर्वाद

गुजराती (जी॰ एन॰ ७१६१) की फोटो-नकलसे।

३६४. एक पत्र

१८ जनवरी, १९२८

भाई. . . .[१]

जब तक. . . .[२] को देखकर भी क्षोभ होता है तबतक उसे देखनेका भी छोड दो। यह सब कार्य बलात्कारसे नहीं होना चाहिये। इस बारेमें मुझे आश्रम में पूछना।

बापुके आशीर्वाद

सी॰ डब्ल्यू॰ १६३९ से।
सौजन्य : रमणीकलाल मोदी
  1. नाम छोड़ दिये गये हैं।
  2. नाम छोड़ दिये गये हैं।