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२०. भाषण : अमरावतीपुरमें

२३ सितम्बर, १९२७

मित्रो,

आपने अभी मुझे जो थैली दी है उसके लिए मैं आपको धन्यवाद देता हूँ और मैं आशा करता हूँ कि इस जगह या यहाँके रहनेवालोंके बारेमें मेरी अनभिज्ञताको आप क्षमा करेंगे। अभी-अभी पूछनेपर मुझे पता लगा कि यही वह जगह है जिसने देशके इस हिस्सेको राष्ट्रीय कार्यकर्त्ता दिये हैं।

मैं भारतके धनी लोगोंसे कहता रहा हूँ कि यदि उन्हें अपने लाखों क्षुधात भाइयों- से जीवन्त सम्बन्ध कायम करना है तो इससे अच्छा कोई तरीका नहीं है कि वे खादी और चरखेके सन्देशको अपनायें।[१] इसलिए आप लोगोंने खादी कार्यके लिए यह थैली देकर निस्सन्देह अच्छा काम किया है। और मैं चाहूँगा कि आप कमसे-कम जो दे सकते हों, वह नहीं, बल्कि ज्यादासे-ज्यादा जो दे सकते हों, दें। और यदि आपने अधिकसे- अधिक न दिया हो तो मैं इस स्थानके सभी धनवान लोगोंसे कहूँगा कि वे अपनी जेबोंमें और गहरे हाथ डालें और फिर जो धनराशि देना उचित लगे सो दें। लेकिन धनके रूपमें आप अधिकाधिक कुछ भी क्यों न दें, मैं ऐसा नहीं मानूंगा कि आपने खादीके लिए यह अधिकसे-अधिक काम कर दिया या आप इससे अधिक नहीं कर सकते।

यदि आपको चरखेके सन्देशमें विश्वास है तो मैं आपको आसानीसे इस बातका यकीन करा दे सकता हूँ कि यदि आप खादी पहननेको तैयार न हों तो खादीके लिए आप अपना सारा धन देकर भी कुछ नहीं कर पायेंगे। क्योंकि जबतक हम खादी नहीं पहनते तबतक गरीबोंसे खादी तैयार कराना बेकार है। इसलिए मैं आपसे कहूँगा कि जो लोग अभीतक आदतन् खादी नहीं पहनते हैं वे विदेशी वस्त्रोंका सर्वथा त्याग कर दें और केवल खादीका ही उपयोग करें। जो बात मैंने पुरुषोंसे कही है वही बात मेरे चारों ओर बैठी हुई बहनोंपर भी लागू होती है।

मैं समझता हूँ कि कराइकुडीकी तरह यहाँ भी आप लोगोंने गरीब लोगोंको भोजन कराया है। यदि कराया हो तो मैं यह तो स्वीकार करूंगा कि इससे आपके हृदयकी उदारता व्यक्त होती है, लेकिन इससे आपका कोई वास्तविक गुणोत्कर्ष हुआ हो सो मैं नहीं मानता। मुझे विश्वास है कि भारतके ज्यादातर लोग गरीबोंको भिखारी और कंगाल नहीं बनाना चाहते। इसलिए जो बात मैंने कल रात कही, वहीं यहाँ दुहराता हूँ कि घनवान लोग सबसे अच्छा जो दान आज दे सकते हैं वह है खादी संगठनकी सहायता करना। खादी कार्यके लिए दिये गये एक रुपयेका अर्थ प्रतिदिन १६ औरतोंको काम और प्रत्येकको १ आना देना है। और यदि आप आत्म-

  1. १. देखिए " भाषण : सार्वजनिक सभा, कनडुकातनमें ", २२-९-१९२७।