काठियावाड़ में मैंने देखा कि मैं अपनी आवाज लगभग पहले जैसी ऊँची करके बोल सकता हूँ और इसमें थकान या कोई असुविधा नहीं होती। मेरा भाषण[१] खूब सुविचारित था और तेजीसे दिया गया था। मैं पूरे एक घंटेतक बोला और उसके बाद थकानका कोई चिह्न नहीं था। निश्चय ही यह मेरी प्रगतिकी कुछ कसौटी तो थी ही। और मैं लगातार दो दिनतक ११ बजे रात तक चलनेवाली समितिकी बैठकों में शामिल ही नहीं हुआ, उनमें बोल भी सका।
कामके बारेमें भी मैं यह नहीं कह सकता कि मैं बहुत श्रमसाध्य काम नहीं कर रहा हूँ, लेकिन यह मेरे बूतेके बाहर नहीं है।
लक्ष्मीको बुखार किस कारण हुआ है? मुझे आशा है कि अब वह ठीक-ठाक है। मैं तुम्हें अस्पृश्यता सम्बन्धी कार्यके लिए शीघ्र ही ५,००० रुपये भेजनेकी आशा रखता हूँ।
- अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०५०) की फोटो-नकलसे।
बापू
३८८. पत्र : रिचर्ड बी॰ ग्रेगको
सत्याग्रह आश्रम
साबरमती
२८ जनवरी १९२८
मुझे खुशी है कि तुम अब पूनामें हो। मुझे आशा है कि तुम तेजीसे स्वास्थ्य लाभ कर लोगे। जितनी जल्दी तुम आ सको तुम यहाँ आना। मैं प्रतीक्षा करूँगा। मैं चाहूँगा कि तुम अपने दिमाग से यह बात निकाल दो कि तुम डाक्टरोंके या मेरे ऋणी हो। आखिरकार हम लोग बिना पुरस्कारकी अपेक्षा किये एक दूसरेकी सेवा करनेके लिए इस धरतीपर हैं।
कृपया खम्बाता-दम्पतिको मेरी याद दिला देना, और जब अगली बार पत्र लिखो तो बताना कि खम्बाताके क्या हाल हैं।
तुम सबको प्यार सहित,
हृदयसे तुम्हारा,
बापू
मार्फत श्री एफ॰ पी॰ पोचा
८, नेपियर रोड, कैम्प, पूना
- अंग्रेजी (एस॰ एन॰ १३०५६) की फोटो-नकलसे।
- ↑ देखिए "भाषण : काठियावाद राजनीतिक परिषद, पोरबन्दर में", २२-१-१९२८ ।