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एक बहनकी उलझन

सामर्थ्य न हो तो वह यह कार्य अन्य समर्थ लोगोंको सौंप दे। यदि न्यासके लोग कार्य-भार सौंपनेमें ढील करें तो उनके विरुद्ध सत्याग्रह किया जा सकता है या फिर जनताके धनका दुरुपयोग करनेके कारण उन्हें दण्ड दिया जा सकता है अथवा इन दोनोंके बीचका रास्ता अदालतमें जानेका है। मैं इस न्यासका सदस्य नहीं हूँ, उसका कारण यह है कि अब मैं किसी भी समितिका सदस्य नहीं हूँ। आश्रम और चरखा संघकी प्रबन्ध समिति से भी मैंने त्यागपत्र दे दिया है। अब मैं आपसे सत्ताके बलपर, कठोरताके साथ काम नहीं लेना चाहता बल्कि प्रेमसे और आपके हृदयको स्पर्श करके ही काम लेना चाहता हूँ। मैं न्यासका सदस्य तो नहीं हूँ किन्तु इतना अवश्य बता देना चाहता हूँ कि जो लोग इसके सदस्य नहीं हैं उनकी जवाबदारी इससे कुछ कम नहीं हो जाती।

[गुजरातीसे]
प्रजाबन्धु, ५-२-१९२८

३९१. एक बहनकी उलझन

एक बहन लिखती हैं :

दो साल पहले मैंने आपको खादीपर भाषण देते हुए सुना था। आपने सबको खादी पहननेकी सलाह दी थी। उसपर से मैंने खादी पहननेका निश्चय किया। पर हम गरीब हैं; और मेरे पति कहते हैं कि खादी महँगी पड़ती है। हम महाराष्ट्री हैं अतः दक्षिणी ढंगकी साड़ियाँ पहनती हैं। उसकी लंबाई नौ गज होती है। अब मैं नौके बदले छः गजकी साड़ी पहनूँ तो बहुत खर्च बचे। पर मेरे बड़े लोग मुझे ऐसा करने नहीं देते। मैं उन्हें बहुत ही समझाती हूँ कि प्रधान वस्तु खादी है, साड़ी पहननेकी रीति तो गौण वस्तु है। पर तूतीकी आवाज सुने कौन? वे कहते हैं कि तू तो अभी भरी जवानीमें है, इसीसे तुझे अभी ये नखरे सूझते हैं। पर आप अगर यह संदेशा भेजें कि साड़ी किसी भी ढंगकी पहनी जाये पर खादीकी ही पहननी चाहिए, तो वे मान जायेंगे। गरीब बहनकी इतनी मदद तो जरूर कीजिएगा।

मूल पत्र अंग्रेजीमें है। मैंने यहाँ उसके जरूरी अंशका तर्जुमा दिया है। इस बहनको तो मैंने अपनी सलाह लिख[१] भेजी है। पर मैं जानता हूँ कि इस बहनकी जैसी कठिनाई तो बहुत-सी बहनोंके आगे आती है और इसलिए यहाँ उसका जवाब देता हूँ।

इस बहन में शायद तीव्र देशाभिमान है क्योंकि बहुत-सी बहनें, इनके समान अपने-आप पुराने ढंग या पुराने रिवाज छोड़ने को तैयार नहीं होतीं। एक भी असुविधा

  1. यह पत्र उपलब्ध नहीं है।