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पत्र : हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

जैसे ही मुझे आपका सुधरा हुआ चरखा मिलेगा, मैं उसे इस्तेमाल करके अपनी राय लिखूंगा। अभय आश्रमके बारेमें मुझे दुःख है। उन लोगोंने मुझे कुछ नहीं लिखा है।

मैं देखता हूँ कि निखिल अभी भी खतरेसे बाहर नहीं है। मुझे पूरी आशा है कि वह ठीक हो जायेगा ।

क्या आपने मीठूबहनके ढंगपर अपना स्टाक तैयार करने और उसपर कढ़ाई वगैरहके बाद बेचनेके सवालपर विचार किया है ? खादीपर कढ़ाई वगैरह करनेकी अपनी निपुणतासे मीठ्बहनने अच्छा बाजार तैयार कर लिया है। मुझे आशा है कि मैं लंका और शायद त्रावणकोरमें भी काफी बिक्री कर लूंगा। कहीं ले जाने लायक आपके पास कुछ हो तो एक बक्स-भर बतौर प्रयोगके भेजिए |

सप्रेम,

आपका,
बापू

[पुनश्च : ]

आप २० रु० प्रतिमाहपर गुजारा कर रहे हैं। अगर आप स्वास्थ्य ठीक रखें तो मुझे कोई एतराज नहीं है।

अंग्रेजी (जी० एन० १५७७) की फोटो-नकलसे ।

३०० पत्र : हेमप्रभादेवी दासगुप्तको

कराइकुडी
[१] आश्विन शुक्ल १ [२६ सितम्बर, १९२७ ]

प्रिय भगिनी,

आपका खत मील गया है। कहा तक अनिलका वियोग दुःख रहनेका है ? उसके गुणोंका स्मरण करके दुःख माननेसे कोनसा लाभ उस आत्माको और हमको हो सकता है ? हम क्यों न माने कि अनिलका आत्मा तो अमर है। हमारा संबंध तो उसीके साथ था। देहके साथ न था। देहके साथ होता तो हम उस मृत देहमें मसाला डालकर वर्षों तक वैसे ही रख सकते थे। परंतु हमने तो आत्मा जानेसे देहको अग्नि संस्कार कीया इतना समझनेमें अनुभवमें लानेके लीये न हमें योगी चाहिये और न कोई। हां, हमें ईश्वर पर विश्वास चाहीये और आत्माके अमरत्व पर भी विश्वास चाहीये । अब अनिलके देहको भूल जाय और उन [ के ] गुणोंका अनुकरण करनेकी चेष्टा करें।

  1. १. इस तारीखको गांधीजी कराइकुडीमें थे।