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३२. भाषण : सिरुवयलमें

२७ सितम्बर, १९२७

मित्रो,

मैं आपको ताड़पत्रोंपर अंकित यह अभिनन्दनपत्र भेंट करनेके लिए तथा प्रचुर मात्रामें सूत और यह थैली देनेके लिए धन्यवाद देता हूँ। मुझे यह कहनेकी जरूरत ही नहीं कि ताड़पत्रोंपर अभिनन्दनपत्र भेंट करनेका यह रिवाज बेहद अच्छा है। आप मुझसे लम्बे भाषणकी आशा न करें लेकिन मैं आपसे यह आशा करता हूँ कि चेट्टि- नाडमें जो भाषण मैं देता रहा हूँ उन्हें आप पढ़ें। इस आश्रमके लिए जरूर मैं आपको बधाई देना चाहता हूँ। मैं जानता हूँ कि आश्रमके कार्यकर्ता यदि पवित्र, स्वार्थहीन तथा आत्म-त्यागी हों तो ऐसा आश्रम कई तरहसे जन-कल्याणको प्रोत्साहन देगा। इसलिए मैं आपसे आश्रमकी गतिविधियोंमें रुचि लेनेको कहूँगा और यदि ये गतिविधियाँ स्वयं आपको अच्छी लगें तो आश्रमको आप हर तरहसे सहायता दें। मुझे मालूम है कि आश्रमका एक गुरुकुल है जहाँ बालक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे हैं। आश्रम अन्त्यज बालकोंके लिए एक शाला भी चला रहा है, आसपासके गाँवोंमें सफाई कार्य कर रहा है तथा वालकोंको कताई सिखा रहा है। ये सारी प्रवृत्तियाँ बहुत अच्छी हैं। इन सबमें अन्त्यजोंके बीच कार्य करनेको मैं सबसे महत्त्वपूर्ण मानता हूँ। किसी विशेष परि- स्थितिमें जन्म लेनेके कारण ही किसीको अन्त्यज मान लेना गलत है और अधर्म है। शिक्षा और हर प्रकारकी सुविधा प्राप्त करनेका अन्त्यज बालकोंको भी उतना ही अधिकार है जितना दूसरे बच्चोंको। इसलिए मैं चाहूँगा कि इस अस्पृश्यता निवारण कार्यमें आपसे जितना सहयोग सम्भव हो उतना दें। मुझे अपने सामने ऐसे बच्चे दिखाई पड़ रहे हैं जो ठीक स्वस्थ प्रतीत नहीं होते। उन्हें अपने भोजनमें बढ़िया शुद्ध दूध मिलना चाहिए, और उन्हें खुली हवामें व्यायाम करना चाहिए तथा समय- समयपर उनका वजन भी लिया जाना चाहिए। मैं यह भी देख रहा हूँ कि उनके बाल बढ़े हुए हैं, जो उचित नहीं है। व्यक्तिगत तौरपर तो मैं इस बातसे सहमत हूँ कि सब लड़कोंकी खोपड़ी घुटी हुई होनी चाहिए। ब्रह्मचारियोंका बाल बढ़ाये रखना अपेक्षित नहीं है। मैं लड़कोंको खादी पहने हुए देख रहा हूँ, यह एक बहुत अच्छी बात है। लेकिन लड़कोंसे सम्बन्धित हर बातका खयाल उनकी देखभाल करनेवालों को रखना चाहिए। लड़कोके अभिभावकोंका स्थान उनके शिक्षक लेते हैं इसलिए लड़कोंके अच्छे स्वास्थ्य, उनके चरित्र तथा उनके मानसिक विकासका उत्तरदायित्व शिक्षकोंपर ही है। मुझे अपने सामने कुछ लड़कियाँ भी दिखाई दे रही हैं जो बहुत ज्यादा और अरुचिकर ढंगसे जेवर पहने हुई हैं। उनके कानोंके ये भारी झुमके केवल भद्दे ही नहीं दिखाई दे रहे हैं बल्कि वे चेहरेके सारे रंग-रूपके समुचित विकासमें भी बाधा उपस्थित करते हैं। मैं चाहता हूँ कि आपकी माताएँ ऐसे भद्दे और दिखावटी